संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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आखातीज की राम-राम मित्रों,
‘अक्षय तृतीया’ साल के साढ़े ३ मुहूर्त में से एक मंगलतम और शुभदिन। किसी भी काम की शुरूआत इस दिन करना मंगलकारी और सफलता भरा होता है। यह मुहूर्त ‘अक्षय मुहूर्त’ कहलाता है। शादी-ब्याह या किसी भी मंगल कार्य के लिए यह दिन अत्यंत शुभ और भगवान परशुराम जी का जन्मोत्सव भी इसी दिन मनाया जाता है।
इन सारी खासियत के अलावा अक्षय तृतीया सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकार की एक समृद्ध विरासत है। आखातीज की बात आती है, तो मुझे उत्तर महाराष्ट्र के खान्देस अंचल की स्मृतियाँ उभर आती हैं। इस आँचलिक क्षेत्र में ‘अहिरानी’ भाषा बोली जाती है। हमारे बचपन के दिनों में आखातीज के झूले पड़ते थे। अमूआ की डालियों पर या आँगन वाले नीम की टहनियों पर आखातीज के झूले झूलना चरम आनंद की बात होती थी। झूलते हुए आखातीज के रसीले गीत गाए जाते थे। गाँव की सभी बेटियाँ, भुआ ससुराल से मायके आती तो सारा गाँव जैसे आनंद से भर जाता था। कुँआरी लड़कियाँ इन दिनों गौराई की पूजा बांधती और झुंड बनाकर जंगल से भिन्न-भिन्न वृक्षों की पल्लव लाकर माँ गौरी को अर्पण किया करती। फिर झूलों का दौर चलता, गौराई के गाने गाए जाते। हँसी-ठिठोली के माहौल में गौराई का उत्सव मनाना बहुत रंगतदार माहौल पैदा करता था। समूह बनाकर लड़कियाँ गौराई के गीत गाती, जब पानी भरने नदी पर आती, तो मनचले उनका पीछा करते हुए तरह-तरह के व्यंग्य कसते। बड़ी करारी और द्विअर्थी शैली में लड़कियाँ उनके व्यंग्यों का जवाब दिया करती। आयोजन बिना ही शेरो-शायरी का रसीला माहौल निर्मित हो जाता था। सारे वातायन में गौराई के गीतों की गूँज सुनाई पड़ती।
चढ़ते सूरज तले कुँआरी गगरी (केली) और लोटा नदी के ठंडे जल से भरकर उपर खरबूज रखकर विधिवत पूजन किया जाता। पूरण पोली का नैवैद्य चढ़ाया जाता। पूर
रण पोली,आम रस और बहुत सारे व्यंजनों के रसरंगी भोजन से थालियाँ परोसी जाती और भोजन के बाद लड़के लोग गाँव की अमराइयों में खोकर किस्म-किस्म के देशी आम चूसते फिरते।
इधर, लड़कियाँ झूलों पर सवार होकर गानो में खो जातीं।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।