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चंद दिनों का ये जीवन

डॉ.एन.के. सेठी
बांदीकुई (राजस्थान)

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नाशवान है ये जग सारा,
फिर भी नहीं मानता मन है।
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है॥

हम सब मानव कठपुतली हैं,
उसके हाथ हमारी डोरी।
वही चलाता है हम सबको,
फिर भी करते हम सब चोरी।
केवल आत्मा अजर अमर है,
नश्वर ये सब जीवन धन है॥
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है…

करना है वो शीघ्र करो तुम,
साथ समय के ही चलना है।
एक-एक क्षण मूल्यवान है,
साथ प्रकृति के ही ढलना है।
प्रतिक्षण बदले सृष्टि सारी,
नाशवान मिट्टी का तन है॥
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है…

मिला अगर ये जीवन हमको
एक दिन मृत्यु भी आएगी।
ये जीवन का ध्रुव सत्य है,
किसी से टाली न जाएगी।
काम क्रोध मद लोभ मोह सब,
इनसे भरा हुआ ये मन है॥
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है…

सृष्टा द्वारा बना हुआ ये,
इस सृष्टि का यही विधान है।
कर्म करो निष्काम भाव से,
बंधन का बस यह निदान है।
कुछ भी शाश्वत नहीं जगत में,
नाशवान ये तन अरु धन है॥
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है…

सुख-दु:ख का कारण हैं हम ही,
कर्माधारित जीवन सारा।
जैसा कर्म करेगा प्राणी,
फल भी वैसा पाता न्यारा।
अच्छे अच्छे गए सूरमा,
छोड़ गए धन-धान्य भवन हैं।
जो आया है वो जाएगा,
चंद दिनों का ये जीवन है॥

परिचय-पेशे से अर्द्ध सरकारी महाविद्यालय में प्राचार्य (बांदीकुई,दौसा) डॉ.एन.के. सेठी का बांदीकुई में ही स्थाई निवास है। १९७३ में १५ जुलाई को बड़ियाल कलां,जिला दौसा (राजस्थान) में जन्मे नवल सेठी की शैक्षिक योग्यता एम.ए.(संस्कृत,हिंदी),एम.फिल.,पीएच-डी.,साहित्याचार्य, शिक्षा शास्त्री और बीजेएमसी है। शोध निदेशक डॉ.सेठी लगभग ५० राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विभिन्न विषयों पर शोध-पत्र वाचन कर चुके हैं,तो कई शोध पत्रों का अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। पाठ्यक्रमों पर आधारित लगभग १५ से अधिक पुस्तक प्रकाशित हैं। आपकी कविताएं विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हिंदी और संस्कृत भाषा का ज्ञान रखने वाले राजस्थानवासी डॉ. सेठी सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत कई सामाजिक संगठनों से जुड़ाव रखे हुए हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत तथा आलेख है। आपकी विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र का वाचन है। लेखनी का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है। मुंशी प्रेमचंद इनके पसंदीदा हिन्दी लेखक हैं तो प्रेरणा पुंज-स्वामी विवेकानंद जी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
‘गर्व हमें है अपने ऊपर,
हम हिन्द के वासी हैं।
जाति धर्म चाहे कोई हो,
हम सब हिंदी भाषी हैं॥’

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