कुल पृष्ठ दर्शन : 240

You are currently viewing चलो बचाऍं नदी हम

चलो बचाऍं नदी हम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

****************************************

जल जीवन अनमोल है,गिरि पयोद नद बन्धु।
तरसे नदियाँ जल बिना,जो जीवन रस सिन्धु॥

नदियों का पानी विमल,है जीवन वरदान।
पूज्य सदा होतीं जगत,सिंचन खेत ज़हान॥

आकूल जग पानी बिना,नदी तडाग व कूप।
जीव जन्तु निष्प्राण अब,भूख प्यास अरु धूप॥

नीर विषैला न बहे,सरिता निर्झर ताल।
रहे स्वच्छ भू-जल नदी,वरना हो बदहाल॥

नदियाँ जग उर्वर धरा,गिरि पयोद नद सिन्धु।
पानी रक्षण नित करें,बहे नदी बन बन्धु॥

अन्तर्वेदित लालची,काटे तरु पाषाण।
सूख प्रकृति भू जल बिना,जल थल नभ निष्प्राण॥

वर्षण जल भू हरितिमा,घोर घटा नीलाभ।
सुधा सलिल आशीष नित,हो जीवन अरुणाभ॥

नयी ख़ोज विज्ञान हो,हरित भरित हो खेत।
सर सरिताएँ जल भरी,उर्वर बंजर रेत॥

अविरल जल तारक जगत,मानवता नित गान।
परम शान्ति समरस मिलन,हो सप्तनदी स्नान॥

धर्म जाति बिन भाष का,क्षेत्र रंग बिन गेह।
माँ गंगा ममता हृदय,अवगाहन जल देह॥

नदी सरोवर विमल जल,सुरभित सुमन सरोज।
खिले चन्द्रिका कुमुदिनी,खिले सृजन नव ख़ोज॥

आकुल जीवन जल बिना,करो न जल बर्बाद।
पेड़ लगा जीवन बचे,गिरि सरिता आबाद॥

तजो स्वार्थ मानव जगत,काट न सरित पहान।
संचय जल राहत मिले,बचे सभी की ज़ान॥

भूख-प्यास दु:खार्थ जन,एक बूंद जल चाह।
पानी रोटी आश मन,भटक रहे नित राह॥

सब प्राणी खग पशु मनुज,प्यासी दुनिया आज।
तरस रही नदियाँ जगत,जल जीवन आगाज़॥

सलिल बिना नदियाँ वतन,लखि ‘निकुंज’ आह्वान।
पानी रक्षण संचयन,बुझे प्यास इन्सान॥

तजो प्यास सुख सम्पदा,समझ आर्त की प्यास।
सब प्राणी जल प्राण है,जल बिन वृथा विलास॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply