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चिंतक ज्ञानी

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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स्वामी विवेकानंद जयन्ती विशेष…..

Sab ओल्ड/डॉ.राम कुमार झा “निकुंज”, नई दिल्ली/ शीर्षक- /

चिन्तक ज्ञानी वेदान्तक सच,
शक्ति उपासक महा प्रखर था।

नवतरंग नवयौवन सरिता,
अन्वेषक नित अनुशोधक था।

विवेकानंद पूत राष्ट्र यश,
नरेन्द्र कालिका साधक था।

युवाशक्ति का अति सत्प्रेरक,
शिकागो विश्व विजेता था।

उपहासित वह पाया दो पल,
दिनसप्तक विजयी वक्ता था।

दिया ज्ञान वह शून्य विषयक,
वेदान्त मुदित विश्वपटल था।

चतुर्वेद दर्शन न्यायिक शुभ,
धर्म सनातन प्रति अविचल था।

ज्ञान,कर्म राज दान योग जग,
महापुरोधा सत्पथ रत था।

महा प्रचारक आस्तिकता का,
सद्भावन समरस प्रमुदित था।

नास्तिक स्वभावी था नरेंद्र,
पर रामकृष्ण दृष्टिपटल था।

परमहंस का कृपापात्र बन,
माँ काली दर्शन विह्वल था।

नीति-प्रीति मानवता रक्षक,
क्षमा दया करुणा हृदयतल था।

मान सकल वसुधा कुटुम्बकम्,
राष्ट्र प्रथम रक्षण जीवन था।

भारत पावन विवेकानंद,
युवाशक्ति का गौरव रथ था।

देशभक्ति रस मर्यादित नित,
विवेकानंद परहित पथ था।

स्वामी साधक समता सबजन,
स्वाभिमान भारत सेवक है।

नमन विवेकानंद विनत मन,
जयतु भारतं मधु गायक था॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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