चुनाव का अब,माहौल आया,
सब मिल नेता,योग्य ही चुनें
झूठे वादे कर,न जनता लूटे,
कर्तव्य निभाते,करे कार्य पूरे।
कागज़,पन्नों में,खिंचे खाका,
न लोकहित,न विकास करता
सही मायने में जनता को,
आज नेता है खूब छलता।
नोट देकर वोट है लेता,
जनता के विश्वास से खेलता
दिये हुए पैसों को अपने,
कार्यकाल में वह,खूब वसूलता।
आता जब चुनाव का काल,
नेता चलते अपनी चाल
विकास कार्य का ढोंग रचाकर,
जनता को आश्वासन,देते अपार।
निर्माण कार्य में,धांधली करते,
जनता के पैसों से,जेब भरते
अधिक लागत का,बजट बनाकर,
कम टिकाऊ,कार्य सब करते।
नेता जो विकास कार्य करे,
उसको ही आओ,मतदान करें।
पाँच वर्ष तक किसी को भी,
पछताना न पड़े,ऐसा हम काम करें।।
परिचय-श्रीमति मनोरमा चन्द्रा का जन्म स्थान खुड़बेना (सारंगढ़),जिला रायगढ़ (छग) तथा तारीख २५ मई १९८५ है। वर्तमान में रायपुर स्थित कैपिटल सिटी (फेस-2) सड्डू में निवासरत हैं,जबकि स्थाई पता-जैजैपुर (बाराद्वार),जिला जांजगीर चाम्पा (छग) है। छत्तीसगढ़ राज्य की श्रीमती चंद्रा ने एम.ए.(हिंदी) सहित एम.फिल.(हिंदी व्यंग्य साहित्य), सेट (हिंदी)सी.जी.(व्यापमं)की शिक्षा हासिल की है। वर्तमान में पी-एचडी. की शोधार्थी(हिंदी व्यंग्य साहित्य) हैं। गृहिणी व साहित्य लेखन ही इनका कार्यक्षेत्र है। लेखन विधा-कहानी,कविता,हाइकु,लेख (हिंदी,छत्तीसगढ़ी)और निबन्ध है। विविध रचनाओं का प्रकाशन कई प्रतिष्ठित दैनिक पत्र-पत्रिकाओं में छत्तीसगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों में हुआ है। आप ब्लॉग पर भी अपनी बात रखती हैं। इनके अनुसार विशेष उपलब्धि-विभिन्न साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी व शोध-पत्र प्रस्तुति,राष्ट्रीय-अंतर्राष्
ट्रीय पत्रिकाओं में १३ शोध-पत्र प्रकाशन व साहित्यिक समूहों में लगातार साहित्यिक लेखन है। मनोरमा जी की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को लोगों तक पहुँचाना व साहित्य का विकास करना है।