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चेतनाओं को विकसित करने वाला पर्व ‘संक्रांति’

गोवर्धन दास बिन्नाणी ‘राजा बाबू’
बीकानेर(राजस्थान)
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जीवन के रंग (मकर संक्रांति विशेष)….


मकर संक्रांति भारतवर्ष का एक ऐसा बड़ा प्रसिद्ध त्यौहार है,जो अलग-अलग राज्य में भिन्न-भिन्न नामों से जाना ही नहीं जाता है, बल्कि कई तरीक़ों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति कहा जाता है तो तमिलनाडु में पोंगल नाम है,जबकि गुजरात में इसे उत्तरायण कहते हैं तो असम में माघी बिहू कहते हैं।
यह त्यौहार भारत ही नहीं,नेपाल और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है।
इस त्यौहार के पीछे एक खगोलीय घटना है।मकर का मतलब है मकर राशि से,जबकि संक्रांति का मतलब संक्रमण। इस दिन मोटे तौर पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है यानी सर्दियों की सबसे लंबी रात २२ दिसंबर के बाद। सूर्य के किसी राशि में प्रवेश करने या निकलने का अर्थ यह नहीं है कि सूर्य घूम रहा है,इसका आसान भाषा में यह मतलब है कि सूर्य किस तारा समूह (राशि) के सामने आ गया है।
सभी जानते हैं कि,संक्रांति के बाद देश में दिन बड़े और रातें छोटी होती जाती हैं। यह बात तकनीकी तौर पर सही है क्योंकि उत्तरी गोलार्ध में १४-१५ जनवरी के बाद से सूर्यास्त का समय धीरे-धीरे आगे खिसकता जाता है। आगे खिसकने का मतलब है कि सर्दियां कम होंगी और गर्मी बढ़ेगी,क्योंकि सूर्य उत्तरी गोलार्ध के सीध में अधिक समय तक रहेगा। इसी कारण से मकर संक्रांति को सूर्य के उत्तरायण का दिन कहा जाता है।
मकर संक्रांति यानी सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का संक्रमण काल यानि मकर संक्रांति तब शुरू होती है,जब सूर्य देव राशि परिवर्तन कर मकर राशि में पहुंचते हैं।
मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है जो धरती की तुलना में सूर्य की स्थिति के हिसाब से मनाया जाता है। यही वजह है कि चंद्रमा की स्थिति में मामूली हेरफेर की वजह से यह कभी १४ तो कभी १५ जनवरी को होता है,लेकिन सूर्य की मुख्य भूमिका होने की वजह से अंग्रेज़ी तारीख़ नहीं बदलती।
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी खूब है। मान्यता है कि सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं। भगवान विष्णु ने असुरों का संहार भी इसी दिन किया था। महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक प्रतीक्षा की थी। इन सबके अलावा भी अनेक कारण है, जिससे हमारे सनातन धर्म में मकर संक्रांति से शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य ज़रूरतमंद लोगों को भिन्न-भिन्न वस्तुओं का दान करना,सूर्य की उपासना करना होता है।
सूर्य संस्कृति में मकर संक्रांति का पर्व ब्रह्मा,विष्णु, महेश,गणेश,आद्य शक्ति और सूर्य की आराधना एवं उपासना का पावन व्रत है,जो तन-मन-आत्मा को शक्ति प्रदान करता है। संत-महर्षियों के अनुसार इसके प्रभाव से प्राणी की आत्मा शुद्ध होती है, संकल्प शक्ति बढ़ती है और ज्ञान तंतु विकसित होते हैं। यानि मकर संक्रांति इन सभी चेतनाओं को विकसित करने वाला पर्व माना गया है।

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