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जज्बा अपने-आपसे

कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
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उड़ने की अगर चाह हो तो आसमां कम नहीं होता,
मजबूत हो ईरादे तो कोई रुतबा नहीं होता।

दर्द हो सीने में तो हौंसला भी कम नहीं होता,
‘जज्बा’ अपने-आपसे बेहतर नहीं होता।

काँटों भरी इस मंजिल में कोई अपना नहीं होता,
चूम लेना आसमां को, काँटा भी कभी फूल नहीं होता।

निखर जाता है पत्थर भी एक दिन दरिया में,
इस जहाँ में हर कोई आदमी पत्थर नहीं होता।

कोशिश करें इंसान तो क्या नहीं हो सकता,
मुठ्ठी में बंद तो कभी मुकद्दर भी नहीं होता।

बहुत दूर है मंजिल अभी काँटों के इस सफर में,
जीवन के इस सफर में हौंसला कम नहीं होता।

चाहे तो इंसान कुछ कर गुजरने की,
हौंसलों से बढ़कर कोई जज्बा नहीं होता।

यूँ न रोकर मिटाना कभी भी जिंदगी को,
इंसान से बढ़कर कुछ भी नहीं होता।

माना कि इंसान के कोई पर नहीं होते,
हौंसला हो बुलंद तो ख्वाब भी कम नहीं होते।

इस जहाँ में हर आदमी पत्थर नहीं होता,
कोशिश करें इंसान तो क्या बेहतर नहीं होता ?

परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”