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जन-मन के प्रिय चितेरे रहे

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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विनम्र श्रद्धांजलि-कवि मोहन सोनी…………


साहित्य को अपना धर्म और कविता को अपना कर्म मानने वाले कलम के सिपाही जो सतत लेखन की प्रेरणा देते रहते थे और स्वयं भी उत्साहपूर्वक साहित्य जगत में छाए हुए थे,जिनकी लेखनी में जहाँ मालवा की काली मिट्टी के लोच के साथ लोक भाषा मालवी की मनभावन गंध की सुवास थी,तो जन-जन की भाषा,राष्ट्रभाषा हिंदी की सुघड़ता भी थी। मालवी और हिंदी के यश को काव्य मंचों पर प्रसारित करने वाले कलमकारों की लम्बी सूची में विगत पांच दशक से अधिक समय से एक नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता था,वह है जन-मन के प्रिय कवि मोहन सोनी का।
२३ मई १९३८ को जन्मे मोहन सोनी भारत के हृदय की बात,हृदय की भाषा में बड़े सलीके से कहते थे। हिंदी के प्रति जितनी निष्ठा रखते थे,मायड़ बोली के प्रति भी उतनी ही श्रद्धा रखते थे। काव्य मंच पर जहॉ आज लतीफों का दौर चल रहा है,ऐसे में अपनी कविता की धाक रखने वाले में श्री सोनी का नाम पूरे देश में मालवा की शान के रूप में जाना जाता था। सोनी जी कहते थे,-“किसी समय साहित्य की केवल एक ही परिभाषा होती थी,साहित्य समाज का दर्पण होता है,लेकिन कविता जबसे धन कमाने का माध्यम बनी,तबसे साहित्य के दो धड़े हो गये। लेखन दो तरह का हो गया एक मन के लिए और दूसरा धन के लिए। मन के लिए लिखने वाले किताबों की शान बने और धन के लिए लिखने वाले मंचों की शान कहे जाने लगे”,लेकिन मोहन सोनी वो नाम था जो मंच और प्रकाशन दोनों जगह पर छाया हुआ था। १९५५ से मंचीय परम्परा में सक्रिय सोनी जी ने गीत चांदनी जयपुर,महामूर्ख सम्मेलन अलवर,जाजम इंदौर जैसे अन्तर्राष्ट्रीय आयोजनों में अपनी मजबूत भागीदारी कर उज्जयिनी का नाम रोशन किया था। वहीं हथलेवो और गजरो दो मालवी गीत संकलन देकर समाज को सम्मोहित करने में कोई कसर नही छोड़ी। सोनी जी की रचना शिवाजी अदभुत और कालजयी रचना है। यही वजह है कि सोनी जी की रचनाएँ विक्रम विश्वविद्यालय के कला संकाय के प्रथम वर्ष में लोकभाषा विषय के अंतर्गत पढ़ाई जा रही है। सोनी जी के जीवन की जिन उपलब्धियों की चर्चा जरुरी है,उनमें शिवमंगलसिंह सुमन,नीरज,सोम ठाकुर,रामनारायण उपाध्याय, सुल्तान मामा,सत्यनारायण सत्तन जैसे कई ख्यात नाम हैं,जिनके साथ मंचों पर आपने काव्य पाठ किया। वर्तमान की पीढ़ी के साथ भी उनका रचनात्मक और मंचीय सामंजस्य देखते ही बनता था।जब भी मिलते एक प्रश्न होता-क्या लिख रहे हो,जो हर किसी को उनकी आत्मीयता का कायल बना देता था। सोनी जी को संस्थाओं ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान किए। म.प्र. विधान सभा में भी आपने काव्यपाठ किया,आजीविका हेतु आप शिक्षक थे, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद भी आपने शिक्षक की भूमिका नहीं छोड़ी थी। हर समय समझाने और सिखाने को तैयार रहते थे जो की सोनी जी को जन-मन का चितेरा सिद्ध करता है। अपने जीवन के ८० वसंत देख दादा मोहन सोनी १८ जून २०१९ को अनंत की यात्रा पर निकल गये। सोनी जी का प्रयाण मालवा के काव्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी दिव्यात्मा को परम शांति मिले यही प्रभु महाकाल से कामना।

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