कुल पृष्ठ दर्शन : 154

You are currently viewing जलवायु परिवर्तन और बच्चे

जलवायु परिवर्तन और बच्चे

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
*****************************************

पर्यावरण दिवस विशेष….

टैग- / /सब ओल्ड/आलेख/ डॉ.अरविन्द प्रेमचंद जैन, भोपाल

‘विश्व पर्यावरण दिवस’ पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष १९७२ में की थी। इसे ५ से १६ जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। ५ जून १९७४ को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
१९८७ में इसके केन्द्र को बदलते रहने का सुझाव सामने आया और उसके बाद से ही इसके लिए अलग-अलग देशों को चुना जाता है। इसमें हर साल १४३ से अधिक देश हिस्सा लेते हैं और कई सरकारी,सामाजिक और व्यावसायिक लोग पर्यावरण की सुरक्षा,समस्या आदि पर बात करते हैं।
पर्यावरण को सुधारने हेतु यह दिवस महत्वपूर्ण है,जिसमें पूरा विश्व रास्ते में खड़ी चुनौतियों को हल करने का रास्ता निकालता हैं। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है।
जलवायु परिवर्तन का बच्चों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रूप में प्रभाव पड़ता है। मनुष्यों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से वयस्कों की तुलना में बच्चे अधिक कमजोर होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि बीमारी के मौजूदा वैश्विक बोझ का ८८ फीसद ५ साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करने वाले जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है।
बच्चे अपने सभी रूपों में जलवायु परिवर्तन के लिए शारीरिक रूप से अधिक कमजोर हैं। जलवायु परिवर्तन एक बच्चे के शारीरिक स्वास्थ्य और उसकी भलाई को प्रभावित करता है। प्रचलित असमानता,देशों के बीच और भीतर,यह निर्धारित करता है कि जलवायु परिवर्तन बच्चों को कैसे प्रभावित करता है।
कम आय वाले देश में रहने वाले लोग बीमारी के एक उच्च बोझ से पीड़ित हैं,और जलवायु परिवर्तन के खतरों का सामना करने में कम सक्षम हैं।
बच्चे घरों के विनाश,खाद्य सुरक्षा के लिए खतरों और जलवायु परिवर्तन के बारे में लाए गए पारिवारिक आजीविका के नुकसान से प्रभावित हैं। सामाजिक और आर्थिक असमानता,सशस्त्र संघर्ष और स्वास्थ्य महामारी से भी बच्चों पर प्रभाव बढ़ सकता है।
शारीरिक प्रभावों के साथ-साथ, मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव बच्चे के लिए खतरा है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम घटनाएं घरों, विद्यालयों बाल देखभाल केन्द्रों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नष्ट कर सकती हैं। जैसे २०२० में टाइफून मोलव बाढ़ और भूस्खलन ने घरों को नष्ट कर दिया। अनुमानित २.५ मिलियन बच्चों को वियतनाम ने जोखिम में रखा।
जलवायु की घटनाओं ने जीवन और आजीविका को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।टाइफून,तूफान बढ़ने और अन्य गड़बड़ी के परिणामस्वरूप संपत्ति और पूंजी का नुकसान हुआ है।
जब प्राकृतिक घटनाओं की बात आती है,तो प्राकृतिक आपदाओं से परिवारों और बच्चों का विस्थापन होता है। यह विस्थापन चरम मौसम की घटनाओं की वजह से किया जाता है,जिसमें शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य असुरक्षा की दर बढ़ जाती है।
वैश्विक स्तर पर बच्चों को जलवायु परिवर्तन के कारण बीमारी के बोझ का ८८फीसदी सहन करने का अनुमान है। परिणामस्वरूप बच्चों में विभिन्न बीमारियां,विकलांगता,उच्च मृत्यु दर होती है। यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि वायु प्रदूषकों का निरंतर संपर्क जन्म के वजन और छोटे आकार को प्रभावित करता है। वायु प्रदूषण बच्चे के तंत्रिका विकास को प्रभावित करता है।
जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करना महत्वपूर्ण है,खासकर बच्चों पर इसके प्रभाव से निपटना। इसके लिए शैक्षिक और कला आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से इस मुद्दे को लक्षित करना और माता-पिता को शामिल करना महत्वपूर्ण है।
इसके लिए पाठ्यक्रम के भीतर जलवायु परिवर्तन को एकीकृत करना महत्वपूर्ण है। एक बार जब बच्चे अपने आसपास के वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं के अस्तित्व और मांग की तात्कालिकता के बारे में जान लेते हैं,तो वे सुधार के लिए अधिक जागरूक हो जाते हैं। बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और चुनौतियों से निपटने के लिए कई वैश्विक पहल और परियोजनाएं शुरू की गई थीं।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

Leave a Reply