जसवीर सिंह ‘हलधर’
देहरादून( उत्तराखंड)
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बेशक ढेर लगाया धन का,यहीं छोड़कर जाना होगा।
कर्मों के ताने बाने को , यहीं तोड़कर जाना होगा॥
लोभ मोह आपाधापी में,छूट गए सब काम जरूरी,
साधन के हम दास बने हैं,हुई साधना कभी न पूरी।
रहा घूमता मिथ्य शिविर में,पैर पटकता रहा तिमिर में,
आसमान को छूने वाली,चाह हमेशा रही अधूरी।
जिस दिन प्राण साथ छोड़ेंगे,व्योम प्रस्थ को रुख मोड़ेंगे,
गाड़ी घोड़ा छोड़ यहीं पर,तेज दौड़कर जाना होगा॥
जिसे मानते हैं हम अपना,प्राण देह का भार ढो रहा,
जीवन रूपी सजी पालकी,अंतस में तो काल सो रहा।
मानस की हैं दोनों भगिनी,माया मौत नाम की ठगिनी,
अनजाने में मन बंजारा,क्यों जी को जंजाल बो रहा।
कविता जिंदा बची रहेगी,बचे रहेंगे छंद सारथी,
जीवन रूपी इस वीणा के,तार जोड़कर जाना होगा।
लक्ष्य भेदने को क्या आये,आज कौन-से पथ के राही,
सीधी सच्ची राह छोड़कर,करते आये हम मनचाही।
कितने भी हम करें बहाने,अंत समय वो काम न आने,
पेशी जिस दिन ऊपर होगी,तब कर्मों की लगे गवाही।
खाता सबका वहीं खुलेगा,सत्य झूठ के साथ तुलेगा,
गरल भरा गागर में जितना,यहीं फोड़कर जाना होगा॥
वृक्ष भांति यह जीवन होवे,धरती का जो बने आवरण,
ताजी हवा सदा देता वो,करता है क्या कभी विष क्षरण।
प्यार सिंधु से नहीं तोड़तीं,अपना रस्ता नहीं छोड़तीं,
नदियों जैसी रखें जिंदगी,कायम रखतीं उच्च आचरण।
दुखियों के संग आह करें हम,दुनिया की परवाह करें हम,
गुणा भाग छोड़ो ‘हलधर’ अब राह मोड़कर जाना होगा॥