श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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आई सावन की रिमझिम बरसात,
कभी रिमझिम बारिश होती
कभी कभी ओले पड़ते,
कभी बुलबुले बनते।
देखके बबलू-डबलू हर्षित होते,
कभी ओला उठाने जाते
कभी बुलबुला पकड़ते,
ना पकड़ाया तो रोते।
बहुत नटखट हैं वह दोनों भाई,
मन ही मन करते हैं चतुराई
चुपके से दादी को बोला,
ला के दो मुझे बुलबुला।
सुनकर के बबलू-डबलू की बातें,
दादा बैठे-बैठे मन मुस्काते
हँस के बोले नादान बच्चा,
बुलबुला होता है कच्चा॥
चली दादी बच्चों का मन बहलाने,
अपनी हाथों में बुलबुला लाने
खुश हो गए हैं बबलू-डबलू,
गई दादी बुलबुला लाने।
पानी का बुलबुला छूते ही फूट पड़ा,
अब आँसू बहे ऐसे जैसे फूटा घड़ा।
खिड़की से देख रहे हैं मम्मी पापा,
बच्चों संग खेलते मेरे,मम्मी पापा॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।