सलिल सरोज
नौलागढ़ (बिहार)
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वो इस कदर बरसों से मुतमइन है,
जैसे बारिश से बेनूर कोई ज़मीन है।
साँसें आती हैं,दिल भी धड़कता है,
सीने में आग दबाए जैसे मशीन है।
आँखों में आखिरी सफर दिखता है,
पसीने से तरबतर उसकी ज़बीन है।
अपने बदन का खुद किरायेदार है,
खुदा ही बताए वो कैसा मकीन है।
ज़िंदगी मौत माँगे है उसकी आहों में,
उसका मुआमला कितना संगीन है॥
(इक दृष्टि इधर भी:मुतमइन=संतुष्टि, इत्मीनान,ज़बीन=स्नेह,प्रीति,मातृत्व प्रेम, अनुलग्नक,मकीन=घर,निवास स्थान)
परिचय-सलिल सरोज का जन्म ३ मार्च १९८७ को बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)हुआ है। आपकी आरंभिक शिक्षा कोडरमा (झारखंड) से हुई है,जबकि बिहार से अंग्रेजी में बी.ए तथा नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए सहित समाजशास्त्र में एम.ए.भी किया है। एक निर्देशिका का सह-अनुवादन,एक का सह-सम्पादन,स्थानीय पत्रिका का संपादन एवं प्रकाशन किया है। सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र ही आपकी सम्प्रति है। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिशकरते हैं। ३० से अधिक पत्रिकाओं व अखबारों में इनकी रचनाओं का निरंतर प्रकाशनहो चुका है। भोपाल स्थित फॉउंडेशन द्वारा अखिल भारतीय काव्य लेखन में गुलज़ार द्वारा चयनित प्रथम २० में आपको स्थान मिला है। कार्यालय की वार्षिक हिंदी पत्रिका में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं।