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ट्रम्प का बढ़िया गोरखधंधा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का गोरखधंधा भी बड़ा मजेदार है। भारत सरकार द्वारा उनकी मध्यस्थता से इंकार के बावजूद वे मध्यस्थता किए जा रहे हैं। कभी वे नरेंद्र मोदी से बात करते हैं,तो कभी इमरान खान से! मध्यस्थता और क्या होती है ? उनकी मध्यस्थता कश्मीर से बिल्कुल भी संबंधित नहीं है। वे कश्मीर के बारे में तो किसी से कोई बात कर ही नहीं रहे हैं। न तो वे भारत से पूछ रहे हैं कि आपने धारा ३७० और ३५-ए क्यों खत्म की है,न ही वे पाकिस्तान से कब्जाए हुए कश्मीर को लौटाने की बात कर रहे हैं। उनकी तो बस एक ही टेक है। भई! मोदी और इमरान,तुम हालात बिगड़ने मत देना! लड़ मत पड़ना! इमरान,तुम इतनी लफ्फाजी मत कर देना कि भारत अपना संयम खो दे। इमरान का ट्विटर हेंडल करनेवाले किसी बाबू ने मोदी को फासिस्ट,तानाशाह और न जाने क्या-क्या कह डाला। किसी पाकिस्तानी मंत्री ने अपने परमाणु बम का हवाला भी दे दिया। इधर भारतीय रक्षा मंत्री ने परमाणु-संयम पर शाब्दिक-बल्लेबाजी कर दी। ट्रम्प का यह भय निराधार नहीं है कि,कश्मीर के खुलने पर हालात इतने न बदल जाएं कि दोनों देशों के बीच लड़ाई छिड़ जाए। इमरान ने दूसरे बालाकोट की बात कई बार कह दी है। दोनों के बीच पारम्पारिक युद्ध छिड़ जाए तो अमेरिका को कौन-सा नुकसान है ? उसे तो फायदा ही फायदा है। दोनों मुल्क उससे हथियार खरीदेंगे और उसके कृपाकांक्षी बने रहेंगे,लेकिन ट्रम्प की चिंता कुछ और ही है। वह है अफगानिस्तान। ट्रम्प चाहते हैं कि,राष्ट्रपति के अगले चुनाव में वे खम ठोक सकें कि देखो,मैं हूँ कि जिसने अफगानिस्तान से अपनी फौजों की वापसी कर ली और हर माह करोड़ों डाॅलर वहां बर्बाद होने से बचा लिए। ट्रम्प को पता है कि भारत-पाक युद्ध चाहे न छिड़े, सिर्फ तनाव ही बढ़ जाए,तो भी पाकिस्तान की जो फौजें अफगान-सीमांत पर लगी हैं,उन्हें वह भारतीय सीमांत पर डटाना चाहेगा। ऐसे में ट्रम्प अपने मन की मुराद पूरी करने में काफी परेशान हो सकते हैं। इसीलिए,वे अपनी खाल मोटी करके भी मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं। उधर इमरान खान को पता है कि,वे कहीं भी जाएं,सुरक्षा परिषद या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय या अंतरराष्ट्रीय इस्लामी संगठन, कहीं भी उनकी दाल गलने वाली नहीं है,लेकिन पाकिस्तान की जनता के सामने उनकी हंडियाँ उबलती हुई दिखाई पड़ती रहनी चाहिए। अपनी फौज को काबू में रखने के लिए उन्होंने अपने जनरल बाजवा को ३ साल तक और बने रहने का रसगुल्ला दे दिया है। इस भारत-पाक तनाव के कारण ट्रम्प को अपनी छवि सुधारने का मौका भी मिल रहा है। कई राष्ट्र नेताओं के बारे में ऊट-पटांग जुमले उछालने वाले ट्रम्प के मुँह से संयम और शांति की बातें काफी मजेदार लग रही हैं।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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