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माँ शारदे का प्राकट्य

डॉ.अर्चना मिश्रा शुक्ला
कानपुर (उत्तरप्रदेश)
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बसंत पंचमी विशेष…..

यह माह वही जब ज्ञानदायिनी
प्रकट हुई इस सृष्टि में,
देखें ब्रम्हा अपनी रचना
कुछ सूनापन-सा लगता है।
माधुर्य नहीं लालित्य नहीं
यह मूक धरा वीरानी-सी,
फिर हाथ जोड़ आहान कर
पूजा करते-अर्चन करते,
माँ प्रकट हुई प्राकट्य हुआ।
वाणी लेकर संगीत लिए
अवतरित हुई वीणापाणिनी,
फूटी रसधारा जगती में
कवि की वाणी हर वाणी में,
अक्षर-अक्षर कर बोल उठा।
सबकी प्रतिभा गुनगुना रही
खुशहाल धरा लहलहा रही,
सब जगह गीत लालित्य घुला
यह बुद्धि ज्ञान बरसाती है।
माँ की ही कृपा से यह सृष्टि
है भाव भरी,भाषामय है,
मेरा हर स्वर अक्षर-अक्षर
वाणी में माँ ही उतर रही।
यह वरदहस्त मुझ पर रखना,
है मात नमन,है मात नमन॥

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