रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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हे शब्द तू तलवार बन,
हृदय मे जो बिंध सके
आर्तनाद रोक सके,
ऐसा औजार धारदार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
काट सके जो मन के पेंच,
ऐसी जिह्वा को तू खेंच
निःशब्द करने उसे,
कैंची तू काँटेदार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
देशद्रोही बन जो,
माँ को ललकार रहे
तिरंगे का अपमान जो,
आज यहाँ कर रहे
ऐसे नीचजनों का तू,
प्रलय हुकांर बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
जा सिंहासन के छोर तक,
राजनीतिक डोर तक
शब्द को छैनी बना,
नाद का हुंकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
कोमलता का जो जोर है,
वह कमजोर डोर है
फेंक कर शब्द वह,
शक्ति का टंकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
रावण जो विचर रहे,
सीता को लूट रहे
उसके लिए मौत का
पैगाम तू आज बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
बन जनता के रक्षक,
खोल भेद जो भक्षक
न्याय के द्वार खोल,
उसका तू प्रतिकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
आज वह दिन नहीं,
रूप का माधुर्य लिख
प्रेम का कम्पित भाव,
फूल का श्रृंगार लिख
त्याग इसे आज तू,
युद्ध की झंकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
आज जो हाहाकार है,
चारों तरफ अत्याचार है
बे-वश यह सरकार है,
देकर उसको सही ज्ञान
जन स्वर का आकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…
न्याय जो बन रहा,
अन्याय का प्रतीक
कुछ शब्द जो दे रहे,
भ्रामक भाव की सीख।
उसको तू सत्य का,
दे प्रमाण हुंकार बन।
हे शब्द तू तलवार बन…॥