मैं संगिनी तेरे जीवन की,
तेरी परछाई बन चलूँगी।
तू रखे जिस हाल में भी प्रिय,
तेरे संग हँस-हँस जी लूँगी।
संस्कारों का दहेज लाई हूँ,
जीवनभर सम्भाल रखूँगी।
दो कुलों की आन हूँ मैं प्रिय,
मान सदा बढ़ाए रखूँगी।
पिता की दहलीज त्याग कर,
तेरी दहलीज पर पाँव रखा है।
परिवार की मान-मर्यादा निभाना,
ऐसा मैंने व्रत ले रखा है।
रहे तेरा जहाँ रोशन सदा प्रिय,
मैं दीपक की बाती बन जलूँगी।
जन्म-जन्म का साथ तेरा-मेरा,
दिल में तेरी धड़कन बन रहूँगी।
नहीं चाहूँ मैं नौलखा हार प्रिय,
संग बीते वो दो पल चाहती हूँ।
रहूँ मैं सदा तेरे दिल में प्रिय,
ऐसा तेरा प्यार मैं चाहती हूँ।
ऐ माँग सिंदूर,और टीका,
मंगलसूत्र,तुझ पर वार दूँ।
सात-जन्मों का साथ हो तेरा,
रब से तुझे मैं सदा माँग लूँ।
कहती ‘हेमा’,साथ न छोड़ना,
अपना मायका छोड़ यहाँ आई हूँ।
आँखों में सतरंगी सपने बसे हैं,
तुझ संग उन्हें पूरे करने मैं आई हूँ॥
परिचय – हेमलता पालीवाल का साहित्यिक उपनाम – हेमा है। जन्म तिथि -२६ अप्रैल १९६९ तथा जन्म स्थान – उदयपुर है। आप वर्तमान में सेक्टर-१४, उदयपुर (राजस्थान ) में रहती हैं। आपने एम.ए.और बी.एड.की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र-अध्यापन का है। लेखन विधा-कविता तथा व्यंग्य है। आपकी लेखनी का उद्देश्य- साहित्यिक व सामाजिक सेवा है।