ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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किसी के पास एक या दो,
किसी-किसी के पास
दस-दस मुखौटे हैं,
आसमान में उड़ने वाले ये
अरे! नहीं-नहीं, ये उतने ऊँचे नहीं हैं,
पैरों में बाँस बाँध रखे हैं सबने
ये बौने हैं।
पैरों में खूँटे हैं,
कद में भी मुखौटे हैं
ये जमीन में उगने वाले,
वही पिद्दी से चिरौटे हैं
सपाट भाव हीन चेहरे,
और बोलता शरीर
हाँ-हाँ वही बाॅडी लैंग्वेज,
मुखौटों का पोल,
खोल देता है।
मैं वो हूँ जो मैं नही हूँ,
और तुम जो नहीं हो वो हो
लगाओ कहकहे,
क्योंकि हमें कोई
जोकर न कहे,
भीतर-भीतर रोना भी तो है
सोने की कलई चढी़ हो,
या एशियन पेंट से रंगा हो
इन मुखौटों को अकेले में,
उन आँसुओं के बूँदों से
मुझे और तुम्हे धोना भी है,
बस एक बार अपना होना है।
दीवार पर टँगे दर्पण तक,
बिन बम्बू और मुखौटे के
उचककर पहुँचना है
ओह! कितना सुंदर है तू,
अरे! मैं इतनी सुंदर हूँ ?
आओ ये मुखौटे दफनाते हैं,
खुद को एक बार अपनाते हैं॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।