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दाना-पानी नहीं सुहाए

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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दाना पानी नहीं सुहाए, घोटालों में हमें फँसाए।
वर्तमान सत्ता मतवाली,
माने हम सबको मधुशाली॥

पास चुनावी हो रणभेरी, आरोपों में सबको घेरी।
झोला भर-भर गाली देते, सबका उत्तर पीएम देते॥

चलती नहीं एक चालाकी,
हम सब मिलकर भी एकाकी।
बस आशा जनता दरबारी, मिले विजय जनमत दे सारी॥

जनता ही है एक सहारा, वरना हम चुनाव सब हारा।
देशी नेता जीवन दाता,
है चुनाव में घर-घर जाता॥

वादाओं को खूब लुटाता, विजयी बनकर मूर्ख बनाता।
मधुरिम बोल बरसती रहती,
आँखें बारिश होती रहतीं॥

भटके घर-घर वोट रिझाए, हाथ जोड़ मृदु वचन सुहाए।
अपनापन रिश्तों में खोए, लालच जनता मन में बोए॥

भूले जनता दाना-पानी,
नेता की सुन मधुर बयानी।
राजनीति का बना अखाड़ा, शुरू चुनावी बिगड़ा नारा॥

दाना-पानी नेता बाँटे,
जनता नेता जीभर डाँटे।
वोट लोभ में सम अपराधी, हाथ जोड़ जनता मन साधी॥

एक बार अवसर दो मोरा, मिटे विपद जीवन घनघोरा।
करो कृपा एक बार जनता,
तुम दो विजय वर भगवन्ता॥

लोकतंत्र की रक्षा करनी, संविधान इज्ज़त है रखनी।
इ डी इन्कमटैक्स फँसाए,
सी बी आई जाँच कराए॥

घूस लूट गबन मन पीड़ा,
देख अवदशा बने अधीरा।
खाते बैंकों बन्द करायो,
कैसे लोकसभा जय पायो॥

घर जमाई बने हम वैसे, ससूराल कारा है जैसे।
श्रान्त क्लान्त विभ्रान्त हम बने,
घोटालों से हैं सभी सने॥
दोहा-
इंडी गठबन्धन व्यथित, घोटालों फँस केस।
कट्टरता ईमान की, ख़ुद निर्णायक ठेस॥

फँसे गबन आरोप में, चक्रव्यूह घनघोर।
दाना-पानी जेल में, जनमत को झकझोर॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥