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बासी रोटी भी कहाँ!

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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बासी रोटी के लिए, भटक रहे बहु लोग।
कैसी आजादी मिली, फँसे कोटि जन रोग॥

देख भूख की विवशता, क्रन्दित है कवि चित्त।
कैसी जनता अवदशा, भूख प्यास आवृत्त॥

बासी रोटी भी कहाँ, मिलती दीन नसीब।
लानत ऐसी जिंदगी, मानव जन्म गरीब॥

धँसी आँख खोदर बने, सूखी अश्क विहीन।
कहाँ बची सम्वेदना, मानवता श्रीहीन॥

कहाँ मूल अधिकार है, कहाँ नीति कानून।
लावारिस सड़कों पड़े, कहाँ गात में खून॥

मर्माहत लखि वेदना, रोटी आश विलाप।
ताजी रोटी स्वप्न सम, बासी दे अनुताप॥

कहाँ क्षमा करुणा दया, कहाँ नीति पथ न्याय।
शिक्षा का आलोक अब, अन्धकार बस हाय॥

निर्माणक जो राष्ट्र का, गज़ब दीन संताप।
बासी रोटी भी कहीं, सहते बहु आघात॥

बदकिस्मत है दीनता, कहाँ मान-सम्मान।
लावारिस कुत्ते समां, भटक रहेइन्सान॥

शैतानों के बीच में, दीन-दुखी अपमान।
कौन सुने अन्तर्व्यथा, शासक है अनजान॥

राजनीति की महफ़िलों, घूस- लूट की शान।
सत्ता मद ऐसा नशा, दीन-हीन कहँ ज्ञान॥

बासी रोटी चाह मन, बचपन करे तलाश।
बिलख रही माँ भारती, बेबस सन्तति आश॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥