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दुविधा में है न्याय अब

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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असमंजस में न्याय फँस, राजनीति के व्यूह।
बिके अदालत न्याय की, कहाँ बची अब रूह॥

राजनीति व्यामोह में, न्यायालय परिवेश।
सत्य न्याय आश्रित कहाँ, दुविधा में जन देश॥

न्यायालय में न्याय अब, बस पैसों का खेल।
दीन-हीन अन्याय बस, लूट घूस का मेल॥

आज अदालत तारिखें, पड़े अनेकों बार।
धन वैभव सुख चैन सब, लुटे न्याय आसार॥

जनमानस का न्याय पर, नहीं आज विश्वास।
फैल रहे अन्याय विष, असंतोष अहसास॥

न्याय पालिका मान कहँ, कहाँ दण्ड की भीत।
अपराधी नित बढ़ रहे, कहाँ न्याय जन मीत॥

मोल धर्म काँटा कहाँ, कलियुग है घनघोर।
तार-तार न्यायिक विधा, काम क्रोध मद चोर॥

सार्वभौम वह राष्ट्र हो, सब जन न्याय प्रकाश।
हो यकीन फिर न्याय में, न्यायपालिका आश॥

न्याय आत्मा धर्म की, लोकतंत्र आधार।
संविधान का मूल ही, न्याय सुलभ आचार॥

सत्य न्याय पथ आचरण, करें न्याय निज काम।
मानवता रक्षण जगत, न्याय धर्म अविराम॥

करें न्याय नित आचरण, बने हृदय समुदार।
रखें हृदय करुणा क्षमा, न्यायिक शिष्टाचार॥

दुविधा में है न्याय अब, न्यायालय सरकार।
प्रश्न चिह्न न्यायिक जगत, रक मूजल अधिकार॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥