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‘देवनागरी लिपि,वर्तनी और हिन्दी भाषा की संरचना:समस्याएँ और चुनौतियां’ पर हुई संगोष्ठी

गुरुग्राम(दिल्ली)।

विश्व नागरी विज्ञान संस्थान ,गुरुग्राम और केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय (मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार)के संयुक्त तत्वावधान में २२ अगस्त को के.आई.आई.टी. वर्ल्ड ऑफ एजुकेशन के प्रांगण में ‘देवनागरी लिपि,वर्तनी और हिन्दी भाषा की संरचना:समस्याएँ और चुनौतियाँ’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी व कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के निदेशक और वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रो. अवनीश कुमार रहे।


विश्व नागरी विज्ञान संस्थान के अध्यक्ष बलदेव राज कामराह ने उदघाटन सत्र की अध्यक्षता की। दीप प्रज्वलन के बाद संस्थान के महासचिव और निदेशक प्रो. कृष्ण कुमार गोस्वामी ने अतिथियों का स्वागत किया। संस्थान के उपाध्यक्ष और के.आई.आई.टी. ग्रुप ऑफ कॉलेजेस के महानिदेशक डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल ने संस्थान का परिचय देते हुए देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस पर हो रहे शोध कार्यों की जानकारी दी। उन्होंने इसके विकास के लिए वैज्ञानिक दृष्टि को अपनाना उचित बताया। इसके बाद प्रो. गोस्वामी ने बीज भाषण देते हुए देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और ऐतिहासिकता की चर्चा करते हुए आज के संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि देवनागरी लिपि संविधान में उल्लिखित २२ भाषाओं में से ११ भाषाओं में प्रयुक्त होती है। प्रो. गोस्वामी ने उदाहरणों के बताया कि निदेशालय नागरी लिपि और हिन्दी वर्तनी के मानकीकरण पर पछले ५० वर्ष से समय-समय पर कार्य गोष्ठियों और बैठकों का आयोजन करता है जिसमें समूचे देश से विभिन्न कार्यक्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञ विद्वान भाग लेते हैं। इन्हीं विशेषज्ञ-विद्वानों की संस्तुतियों के आधार एक पुस्तिका भी प्रकाशित करती है। बलदेव राज कामराह ने अध्यक्षीय भाषण में बताया कि आचार्य विनोबा भावे ने देवनागरी लिपि को सार्वदेशिक और विश्वजनीन बनाने के लिए अभियान चलाया था,उसी को आगे बढ़ते हुए हमारा संस्थान काम कर रहा है।
उदघाटन सत्र का संचालन निदेशालय के अधिकारी हुकुमचंद मीणा ने किया। धन्यवाद प्रस्ताव संस्थान के संयुक्त सचिव अशोक कुमार ने प्रस्तुत किया।
संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता सांस्कृतिक गौरव संस्थान(गुरुग्राम) के मुख्य सलाहकार और राजभाषा हिन्दी के विशेषज्ञ डॉ. महेशचंद्र गुप्त ने की। महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी-विभागाध्यक्ष और संकायाध्यक्ष तथा केन्द्रीय हरियाणा विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी-विभागध्यक्ष प्रो. नरेश मिश्र ने देवनागरी लिपि के ऐतिहासिक स्वरूप का विवेचन करते हुए उसकी विशिष्टताओं को सूक्ष्मताओं को स्पष्ट किया। विश्व यात्री डॉ. कामता कमलेश ने देवनागरी लिपि की विशिष्टताओं पर चर्चा करते हुए कहा कि,विभिन्न देशों में रह रहे भारतीय मूल के लोग देवनागरी लिपि से बहुत प्यार करते हुए और वे अपने धार्मिक ग्रंथों को अपनी लिपि में पढ़ने के लिए उत्सुक रहते हैं। वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने युवा वर्ग,विशेषकर विद्यार्थियों में देवनागरी लिपि और हिन्दी भाषा को प्रसारित करने के लिए प्रोत्साहित किया। राहुल जी ने भारत में अंग्रेज़ी के वर्चस्व पर दु:ख प्रकट करते हुए हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग में लाने के लिए बल दिया। डॉ. गुप्त ने बताया कि हिन्दी भाषा भारत की सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाली भाषा है,इसी लिए इसे राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। उन्होंने भारतीय भाषाओं के प्रति हो रही उपेक्षा पर दु:ख प्रकट करते हुए अंग्रेज़ी के अधिकाधिक प्रयोग पर अपनी चिंता जताई।
दूसरे सत्र की अध्यक्षता पूर्व सम्पादक राहुल देव ने की। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय(मेरठ) के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. नवीन चंद्र लोहानी ने चीन के शंघाई प्रांत में हिन्दी सिखाने के निजी अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि चीन में हिन्दी के प्रति काफी रुचि है और इसलिए हिन्दी सिखाते हुए हिन्दी की संरचना की स्वाभाविकता और मानकता पर ध्यान देना आवश्यक है। साहित्य अकादमी(नई दिल्ली) के पूर्व उप सचिव और सम्पादक ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने हिन्दी के वैश्वीकरण के बारे में चर्चा करते हुए अल्पसंख्यक भाषाओं के उत्थान के बारे में भी बात की। कॉलेजेज़ के शिक्षा महविद्यालय के निदेशक प्रो. मंजीत सेनगुप्ता ने हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ हो रहे भेदभाव के बारे में चर्चा की।
समापन सत्र में श्री कामराह की अध्यक्षता में प्रो. गोस्वामी ने संगोष्ठी में हुई चर्चा का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि हिंदी की अभिव्यक्ति का सही प्रतिनिधित्व करने में देवनागरी लिपि पूर्णतया सक्षम है। यह लिपि विश्व की तमाम लिपियों में सर्वाधिक वैज्ञानिक और उपयोगी है। यदि भारतीय भाषाएँ और विश्व की भाषाएँ इसे अपना लेती हैं तो विश्व में ऐक्य भावना पैदा होगी और उनमें आपसी वैमनस्य दूर होगा।
अंत में अध्यक्ष द्वारा सभी विशेषज्ञ- प्रतिभागियों को स्मृति-चिह्न भेंट किए गए।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)

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