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धर्म और विज्ञान का सहयोगी बनना जरुरी

रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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“जब-जब होई धरम की हानि,
बाढ़ आई असुर अधम अभिमानी…”
एक तरफ तो पुराण कुछ इस तरह से धर्म की व्याख्या करते हैं,जिसमें जप-तप,दान-सेवा का बड़ा महत्व है,किंतु गीता में-
“यदा-यदा ही धर्मस्य…” जैसे श्लोकों के आधार पर कर्म को धर्म से भी श्रेष्ठ माना गया हैl इसमें कर्म योगी को ही धार्मिक बताया गया है।
कोई भी धर्म हो-हिंदू,मुस्लिम,सिख और इसाई सभी में अच्छी-अच्छी बातें सिखाई गई हैंl किसी भी धर्म में गलत बातों के लिए कोई स्थान नहीं है,किंतु सब अपने-अपने धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए एक-दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं,यही धर्म की सबसे कमजोर कड़ी है।
जो भी हो,आज के बदलते सामाजिक परिवेश में धर्म के संकुचित स्वरूप या जाति विशेष हेतु पूजा-पाठ जैसी धरोहर हेतु कोई स्थान नहीं हैl आज का युग विज्ञान का युग है,विकास का युग है। वैज्ञानिक युग पूरी तरह प्रमाण पर आधारित है,तर्क पर आधारित हैl विज्ञान में क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है,और विज्ञान आधुनिक युग का भगवान हैl
चाहे बात सुविधाओं की हों,चाहे औद्योगिक क्रांति या फिर सामाजिक परिवर्तन की,विश्वस्तरीय अच्छी या बुरी घटनाएं आज सीधे-सीधे विज्ञान से जुड़ी हुई हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में नित-नए आयाम स्थापित कर वह मानव जीवन की रक्षा में अपना विशेष योगदान दे रहा है। उसी तरह अन्य क्षेत्रों में आवागमन के साधन,टी.वी.,मोबाइल व इंटरनेट के जाल ने समाज में जबरदस्त क्रांति पैदा कर दी है।
धर्म आस्था का विषय है,तो विज्ञान तर्क का वैज्ञानिक अपनी बात प्रमाण के साथ प्रस्तुत कर प्रत्यक्ष उदाहरण देता है, तो धर्म पुराण,उपनिषद,महात्माओं की राह पर चलने को सही दिशा बताता है।
धर्म के संकुचित दृष्टिकोण का यह भी एक निंदनीय पक्ष है कि वह धर्म विशेष के आधार पर मानवता को गौंण मानने लगता है,जो उचित नहीं हैl अतः,आधुनिक युग में संकीर्ण धार्मिक विचारों को त्याग कर इंसानियत के धर्म की बात की जाए और उसे विज्ञान का सहयोगी बनाया जाए,वही उचित होगाl इससे धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के विरोधी ना होकर पूरक बन जाएंगे।

परिचय-रश्मि लता मिश्रा का बसेरा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। जन्म तारीख़ ३० जून १९५७ और जन्म स्थान-बिलासपुर है। स्थाई रुप से यहीं की निवासी रश्मि लता मिश्रा को हिन्दी भाषा का ज्ञान है। छत्तीसगढ़ से सम्बन्ध रखने वाली रश्मि ने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण(सेवानिवृत्त शिक्षिका )रहा है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में उपाध्यक्ष सहित कईं सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। सभी विधा में लिखने वाली रश्मि जी के २ भजन संग्रह-राम रस एवं दुर्गा नवरस प्रकाशित हैं तो काव्य संग्रह-‘मेरी अनुभूतियां’ एवं ‘गुलदस्ता’ का प्रकाशन भी होना है। कईं पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में-भावांजलि काव्योत्सव,उत्तराखंड की जिया आदि प्रमुख हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-नवसृजन एवं हिंदी भाषा के उन्नयन में सहयोग करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-मेहरून्निसा परवेज़ तथा महेश सक्सेना हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी भाषा देश को एक सूत्र में बांधने का सशक्त माध्यम है।” जीवन लक्ष्य-निज भाषा की उन्नति में यथासंभव योगदान जो देश के लिए भी होगा।

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