कुल पृष्ठ दर्शन : 12

You are currently viewing नकली दवाओं से बढ़ते खतरे, जतन करने होंगे भारत को

नकली दवाओं से बढ़ते खतरे, जतन करने होंगे भारत को

ललित गर्ग

दिल्ली
**************************************

दवाओं में मिलावट एवं नकली दवाओं का व्यापार ऐसा कुत्सित एवं अमानवीय कृत है, जिससे मानव जीवन खतरे में है। विडम्बना है कि, दवा बनाने वाली कंपनियों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण का कोई नियम नहीं है और स्वयं ही गुणवत्ता का सत्यापन करती हैं। यह ठीक नहीं और ऐसे समय तो बिल्कुल भी नहीं, जब दवाओं की गुणवत्ता को लेकर दुनियाभर में जागरूकता बढ़ रही है। चूंकि, भारत एक बड़ा दवा निर्यातक देश है और उसे ‘विश्व का औषधि कारखाना’ कहा जाता है, दुनियाभर में भारत की दवाओं का निर्यात होता है, ऐसे समय में बार-बार नकली दवाओं का भंडाफोड़ होना या कैंसर जैसी असाध्य बीमारी की नकली दवाओं का व्यापार करने वालों का पर्दाफाश होना, न केवल चिन्ता का विषय है, बल्कि जघन्य अपराध है। यह भारत की साख को भी आहत करता है। इसलिए, सरकार के लिए यह आवश्यक है कि, वह दवा कंपनियों के लिए गुणवत्ता नियंत्रण का कोई भरोसेमंद नियम बनाए एवं नकली दवाओं का व्यापार करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।

कुछ दिन पहले ही कैंसर जैसी असाध्य बीमारी की नकली एलोपैथिक दवाओं के कारखाने पकड़े गए। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने २२ से अधिक नकली या मिलावटी आयुर्वेदिक दवाओं की बिक्री पर रोक लगाई है। दिल्ली पुलिस ने कैंसर से जुड़े नकली दवाओं के एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ किया है। समय आ गया है कि, आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण से जुड़ी कंपनियों की दवा परीक्षण-प्रणाली की ठोस निगरानी सुनिश्चित की जाए। इन नियमों के दायरे में निर्यात होने वाली दवाएं भी आनी चाहिए और देश में बिकने वाली दवाएं भी, क्योंकि इनका उपयोग देश में होने से लोगों का जीवन खतरे में आ जाता है।
यह तय है कि, हमारे देश में आयुर्वेद की बेहद समृद्ध चिकित्सा पद्धति है और करोड़ों लोग इस प्रणाली से लाभान्वित भी हुए हैं। इस बात से आधुनिक चिकित्सा पद्धति (एलोपैथी) या आईएमए का कोई झगड़ा या विरोध भी नहीं है, परेशानी प्रामाणिकता की कसौटी पर खरी आधुनिक चिकित्सा पद्धति को निराधार चुनौती देने और लोगों को गुमराह करने को लेकर है। इन दोनों पद्धतियों के पेशेवरों और दवाओं का अंतिम उद्देश्य मरीजों को स्वस्थ करना है, मगर दुर्योग से दोनों में कुछ लोभी कारोबारी बेबस लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते हैं। जीवन रक्षक दवाइयों के मामलों में दवा बदलने का मौका नहीं होता है, यहाँ मिलावट सीधी मौत देती है। दवा व्यवसाय में चलने वाली यह अनैतिकता बेचैन करने वाली है।
मिलावट व्यवसाय की एक बड़ी त्रासदी है। दूध में जल, शुद्ध घी में वनस्पति घी अथवा चर्बी, महँगे और श्रेष्ठतर अन्नों में सस्ते और घटिया अन्नों आदि के मिश्रण को साधारणतः मिलावट या अपमिश्रण कहते हैं, किंतु मिश्रण के बिना भी शुद्ध खाद्य को विकृत अथवा हानिकर किया जा सकता है और उसके पौष्टिक मान को गिराया जा सकता है। दूध से मक्खन का कुछ अंश निकालकर उसे शुद्ध दूध के रूप में बेचना, अथवा एक बार प्रयुक्त चाय की साररहित पत्तियों को सुखाकर पुनः बेचना मिश्रणरहित अपद्रव्यीकरण के उदाहरण हैं। इसी प्रकार बिना किसी मिलावट के घटिया वस्तु को शुद्ध एवं विशेष गुणकारी घोषित कर झूठे दावे सहित आकर्षक नाम देकर, लुभावने विज्ञापनों से जनता को ठगा जाना अपराध है। पतंजलि आयुर्वेद संस्थान ऐसा ही करते हुए मोटा मुनाफा कमाता रहा है। खासकर दवाओं के मामले में इसके परिणामों की प्रकृति इसे और गंभीर बना देती है। ऐसे में, अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारों के रवैये पर भी गंभीर टिप्पणी की है, विडंबना और प्रश्न है कि, आईएमए ऐसे कितने मामलों में जागरूकता बरतती है।
दवा व्यवसाय में अब आयुर्वेदिक औषधियों को तत्काल राहत देने वाली बनाने के लिए एलोपैथी दवाओं के रसायनों को अवैज्ञानिक तरीके से मिलाने का खतरनाक कारोबार चर्चा में है, जो गंभीर चिंता का विषय है। मध्यप्रदेश में जांच में तथ्य सामने आए हैं कि, आयुर्वेदिक दवा वताहारी वटी तथा चंदा वटी में एलोपैथी दवा डाइक्लोेफेनिक व एसिक्लोफेनिक को मिलाकर अवैध तरीका विकसित किया गया है, जिसे दवा विक्रेता जादुई बताकर देश के विभिन्न हिस्सों में बेच रहे थे। उक्त दोनों रसायनों का उपयोग एलोपैथी में दर्द निवारक के रूप में किया जाता है। चिकित्सकों के अनुसार इसका तात्कालिक प्रभाव भले ही चमत्कारी लगे, किंतु इसका यकृत, गुर्दा तथा पेट के अन्य अंगों पर स्थाई दुष्प्रभाव हो सकता है।

पिछले दिनों विदेश व्यापार महानिदेशालय ने एक अधिसूचना जारी कर कहा कि, १ जून से कफ सिरप निर्यातकों को विदेश भेजने के पहले अपने उत्पादों का सरकारी प्रयोगशालाओं में परीक्षण कराना आवश्यक होगा, लेकिन यह मिलावट एवं नकली दवाओं के उत्पाद पर नियंत्रण के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसा कदम तो निर्यात होने वाली सभी दवाओं के मामले में उठाया जाना चाहिए। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि, कुछ समय पहले एक भारतीय फार्मा कंपनी की ओर से अमेरिका भेजी गई आई ड्राप में खामी मिलने की बात सामने आई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारतीय कंपनियों की ओर से इन देशों में निर्यात किए गए कफ सिरप से कुछ बच्चों की मौत का भी दावा किया। यद्यपि इस दावे को भारत-सरकार ने चुनौती दी, लेकिन कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर विश्व के कुछ देशों में संशय पैदा होना स्वाभाविक है और दुखद भी है। स्पष्ट है कि भारत को अपने दवा उद्योग की साख को बचाने के लिए हरसंभव जतन करने होंगे। औषधि महानियंत्रक को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि, देश में बनने वाली दवाओं की गुणवत्ता को लेकर कहीं कोई सवाल न उठने पाए। मिलावटी दवाओं के कारोबार पर नकेल कसने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में पहली बार बड़े पैमाने पर एक अभियान शुरू किया है, जल्द ही इसके नतीजे सामने आने की संभावना है।