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नशा

गीतांजली वार्ष्णेय ‘ गीतू’
बरेली(उत्तर प्रदेश)
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ये दुनिया एक मयखाना है,
जिसे देखो वही दीवाना है।

शोहरत का कोई दौलत का,
औरत का तो कोई मय का
दीवाना है।
खाने का तो कोई सोने का,
किसी को पढ़ने का,हमको
लिखने का नशा पुराना है।

शोहरत जब जब बढ़ती है,
नशा अहम का छा जाता है
खाकर गुटखा गाल गलाते,
अहंकार व्यक्तित्व खा जाता है
ये दुनिया एक मयखाना है।

दौलत का नशा जब होता,
रिश्तों की मर्यादा खो देता है।
पीकर मय गम भुलाता है
पाकर दौलत धर्म-कर्म भूल
जाता है।
ईश्वर की नियामत है औरत,
पाकर औरत काम नशा चढ़ जाता है।
भूल धर्म अपना,माँ को कलंकित करता है।

नाश कर शराब,सिगरेट-गुटखा,
अंगों को अपने गलाता है
नशा बुरा अहं का समूल नष्ट कर जाता है,
नशा शक्ति का हुआ रावण को
नाश हुआ लंका का,
नाम न रावण का कोई लेता है॥

परिचय-गीतांजली वार्ष्णेय का साहित्यिक उपनाम `गीतू` है। जन्म तारीख २९ अक्तूबर १९७३ और जन्म स्थान-हाथरस है। वर्तमान में आपका बसेरा बरेली(उत्तर प्रदेश) में स्थाई रूप से है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली गीतांजली वार्ष्णेय ने एम.ए.,बी.एड. सहित विशेष बी.टी.सी. की शिक्षा हासिल की है। कार्यक्षेत्र में अध्यापन से जुड़ी होकर सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत महिला संगठन समूह का सहयोग करती हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,लेख,कहानी तथा गीत है। ‘नर्मदा के रत्न’ एवं ‘साया’ सहित कईं सांझा संकलन में आपकी रचनाएँ आ चुकी हैं। इस क्षेत्र में आपको ५ सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। गीतू की उपलब्धि-शहीद रत्न प्राप्ति है। लेखनी का उद्देश्य-साहित्यिक रुचि है। इनके पसंदीदा हिंदी लेखक-महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद,कबीर, तथा मैथिलीशरण गुप्त हैं। लेखन में प्रेरणापुंज-पापा हैं। विशेषज्ञता-कविता(मुक्त) है। हिंदी के लिए विचार-“हिंदी भाषा हमारी पहचान है,हमें हिंदी बोलने पर गर्व होना चाहिए,किन्तु आज हम अपने बच्चों को हिंदी के बजाय इंग्लिश बोलने पर जोर देते हैं।”

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