कुल पृष्ठ दर्शन : 222

नई शिक्षा नीति के संबंध में कुछ सुझाव:मौलिक चिंतन मातृभाषा में ही

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’

मुम्बई(महाराष्ट्र)
***************************************************************

स्वाभाविक रूप से मौलिक चिंतन मातृभाषा में होता है,लेकिन भारत में तेजी से बढ़ रहे अंग्रेजी माध्यम के चलते बच्चा जो स्वभाविक रूप से मातृभाषा जानता है,अंग्रेजी नहीं,वह विवश होकर बचपन से बिना समझे पाठ्यसामग्री को रटने लगता है। इसके कारण धीरे-धीरे उसकी तर्कसंगत व मौलिक चिंतन की स्वाभाविक प्रवृत्ति नष्ट होने लगती है और वह नकल करने,रटने और उसे ज्यों का त्यों लिखने की प्रवृत्ति की तरफ बढ़ता है। यही कारण है कि भारत में मौलिक चिंतन के अभाव में मूल विज्ञान में हम पिछड़ते गए हैं और आयातित प्रौद्योगिकी के प्रायोगिक विज्ञान में ही बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं,अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा के चलते विद्यार्थी जब तक पूरी तरह अंग्रेजी में पारंगत नहीं हो जाता,वह हर विषय के नाम पर अंग्रेजी ही रटता रहता है इसलिए वह किसी भी विषय में पारंगत नहीं हो पाता। यही नहीं,वह अपने राज्य तथा देश की संस्कृति,ज्ञान-विज्ञान और परिवेश से भी दूर होता जाता है।
इस संबंध में मेरे सुझाव निम्नलिखित हैं-
#यह उचित होगा कि देश के किसी भी राज्य में किसी भी विद्यार्थी को,वह निजी का हो या सरकारी शाला का हो,उसे कम से कम आठवीं तक की शिक्षा अनिवार्यतः मातृभाषा में दिए जाने की व्यवस्था की जाए।
#उसके पश्चात भी यदि विज्ञान आदि विषय यदि अंग्रेजी में पढ़ाए भी जाएं,तो भी इतिहास,भूगोल,राजनीति शास्त्र,मनोविज्ञान आदि विषय देश की भाषाओं में ही पढ़ाए जाएं।
#कृषि,विज्ञान और पशु चिकित्सा जैसे विषय जो ग्रामीण जनता और कृषि से संबंधित हैं,को राज्य की भाषा अथवा हिंदी माध्यम से पढ़ाए जाने चाहिए।
#विज्ञान की शिक्षा में यथासंभव वैश्विक वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया जाए। वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक शब्दावली की एकरूपता के कारण विद्यार्थी को भविष्य में दिक्कत नहीं होगी।
#विधि की शिक्षा राज्य की भाषा में अवश्य दी जानी चाहिए,ताकि जनता को जनता की भाषा में न्याय मिल सके।

-भाषा शिक्षण
भाषा शिक्षण की स्वभाविक व्यवस्था यह होगी कि,राज्य के स्तर पर राज्य की भाषा,देश के स्तर पर संपर्क व व्यवहार के लिए देश की भाषा और वैश्विक स्तर पर व्यवहार के लिए अधिक प्रचलित अंग्रेजी भाषा पढ़ाई जानी चाहिए। त्रिभाषा सूत्र की मूल भावना भी यही है। जो विद्यार्थी किसी अन्य विदेशी भाषा में भविष्य बनाना चाहते हैं,उनके लिए विश्वविद्यालय स्तर पर विदेशी भाषा विभाग में शिक्षण की व्यवस्था की जा सकती है-
#अतः पहली कक्षा से मातृभाषा पढ़ानी चाहिए।
#न्यूनतम छठी कक्षा से दसवीं तक मातृभाषा के साथ साथ हिंदी-अंग्रेजी विषय को पढ़ाने की अनिवार्यता होनी चाहिए।

-भाषा-प्रौद्योगिकी शिक्षण-प्रशिक्षण
#माध्यमिक स्तर पर सभी विद्यार्थियों को कम्प्यूटर-मोबाइल आदि पर भारतीय भाषाओं-लिपियों में कार्य के लिए इन्सक्रिप्ट की-बोर्ड का प्रशिक्षण (परीक्षा सहित) दिया जाए,ताकि विद्यार्थी भारतीय भाषाओं में कार्य कर सकें।
#भाषा विषय के अंतर्गत उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में भाषा प्रौद्योगिकी का प्रशिक्षण(परीक्षा सहित) दिया जाना चाहिए,ताकि विद्यार्थी भारतीय भाषाओं में समग्र कार्य करने में सक्षम हो सकें।
#सूचना-प्रौद्योगिकी की शिक्षा व अनुसंधान में भारतीय भाषाओं में कार्य संबंधी नवीनतम प्रौद्योगिकी का समावेश आवश्यक है,ताकि जनता की सुविधा के लिए भारतीय भाषाओं में ऑनलाइन सुविधाएँ, ई.आर.पी. सॉफ्टवेयर आदि विविध नवीनतम सॉफ्वेटयर व सूचना-प्रौद्योगिकी संबंधी व्यवस्थाएँ होती रहें।

-पाठ्य सामग्री
#प्राथमिक और उच्च शिक्षा की कक्षाओं की पाठ्य सामग्री में अनिवार्यत: भारतीय संस्कृति,भारतीय विचारकों और विद्वानों-वैज्ञानिकों आदि की जानकारी तथा अपनी नदियों पहाड़ों,त्यौहारों,परम्पराओं और देश-प्रेम को जगाने वाली पाठ्य सामग्री का समावेश होना चाहिए,ताकि विद्यार्थियों में अपने देश के प्रति लगाव हो। साथ ही देश के वीर सेनानियों,महापुरुषों तथा स्वतंत्रता संग्राम सहित देश-प्रेम को जागृत करने वाली पाठ्य सामग्री होनी चाहिए।
#अंग्रेजी विषय में भी पाठ्य सामग्री में पाश्चात्य संस्कृति के बजाय भारतीय संस्कृति,इतिहास,ज्ञान-विज्ञान तथा महापुरुषों स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर की भौगोलिक जानकारी आदि से संबंधित पाठ अवश्य हों, ताकि भारतीय विद्यार्थियों का मातृभूमि तथा राज्य व देश की संस्कृति से लगाव हो और उनके मन में देश-प्रेम की भावना बढ़े।
#उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में देश की भाषा नीति तथा राजभाषा के संवैधानिक पक्ष की जानकारी का भी समावेश किया जाना चाहिए।
#भाषा विषयों के अंतर्गत प्रयोजनमूलक भाषा या कार्यालयीन भाषा का समावेश किया जाना चाहिए।
#विज्ञान विषय की शाखाओं में वैदिक साहित्य में निहित विज्ञान के मूलभत सिद्धांतों,भारतीय विज्ञान परम्परा का समावेश करते हुए स्वतंत्रता पूर्व और बाद के भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान का भी समावेश अवश्य हो।
#भारतीय भाषाओं में शिक्षण के लिए भारतीय भाषाओं में भी स्तरीय पाठ्यसामग्री की उपलब्धता पर ध्यान दिया जाए।

-शिक्षा के स्तर में सुधार
देश में शिक्षा के व्यवसायीकरण के चलते शिक्षितों और डिग्रीधारियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है,लेकिन शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट आई है। विद्यार्थियों के अंकों के प्रतिशत तेजी से बढ़े हैं,लेकिन उस अनुपात में ज्ञान नहीं। देश में डिग्रीधारी अभियंत्री,शिक्षक,चिकित्सक,वकील आदि सहित ज्यादातर पेशेवर अपना काम ठीक से नहीं जानते-
#इसलिए शिक्षा व परीक्षा के मानदंडों में सुधार किया जाए।
#ज्यादातर विद्यालय-महाविद्यालय केवल दाखिले व परीक्षा तक सामित हैं,विद्यार्थियों की पढ़ाई कोचिंग कक्षाओं में सिमट गई है। शिक्षा के केन्द्र केवल उपाधि बांटनेवाले केन्द्र नहीं,ज्ञान के मंदिर होने चाहिए।
*शिक्षा क्षेत्र के फर्जीवाड़े को दूर करने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिएl

Leave a Reply