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नशे के खिलाफ हो महत्वाकांक्षी युद्ध

ललित गर्ग

दिल्ली
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          पंजाब में आतंकवाद की ही तरह नशे एवं नशीली सामग्री के धंधे ने व्यापक स्तर पर अपनी पहुंच बनाई है, जिसके दुष्परिणाम पंजाब के साथ-साथ समूचे देश को भोगने को विवश होना पड़ रहा है। पंजाब नशे की अंधी गलियों में धंसता जा रहा है। सीमा पार से शुरू इस छद्म युद्ध की कीमत पंजाब की जनता को चुकानी पड रही है। लगातार चुनौती बनी  नशीली दवाओं के धंधे के खिलाफ आप सरकार ने एक महत्वाकांक्षी युद्ध एवं अभियान शुरू किया है। ३ महीने के भीतर इस समस्या का खात्मा करने का सरकार दावा खोखला साबित न होकर सकारात्मक एवं प्रभावी परिणाम लाए, यह अपेक्षित है। निस्संदेह, यह कार्रवाई-अभियान आक्रामक व तेज है, लेकिन ऐसे अभियान चलाने के दावे विगत की भांति कोरा दिखावा न साबित हो, यह देखना जरूरी है।

     दरअसल, सबसे बड़ा संकट यह है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान में हेरोइन उत्पादन के केंद्र-गोल्डन क्रिसेंट के निकट होने के कारण पंजाब लंबे समय से मादक पदार्थों की तस्करी से जूझ रहा है। ड्रग्स उपभोग के मामले में पंजाब की स्थिति अत्यंत चिंताजनक बन गई है। पंजाब के २६ प्रतिशत युवा चरस, अफीम तथा कोकीन व हेरोइन जैसे सिंथेटिक नशा लेने में लिप्त हैं। इसमें शराब आदि का आंकड़ा शामिल नहीं है। पंजाब देश में नशे में सर्वाधिक संलिप्त राज्यों में आता है। सरकार नशे को खत्म करने के बड़े-बड़े दावे कर रही है, जबकि जमीनी हकीकत कुछ और देखने को मिलती है। युवाओं की रगों में नशे का जहर घोला जा रहा है। बड़े शहर नशे के विशेष क्षेत्र बनते जा रहे हैं। बठिंडा, पटियाला, होशियारपुर, अमृतसर और लुधियाना जैसे बड़े शहरों में हालात चिंताजनक हैं। इसका असर प्रदेश की मौजूदा पीढ़ी पर ही नहीं, बल्कि आने वाली पुश्तों पर भी पड़ने लगा है। अभियान की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या हम इस समस्या की जड़ पर प्रहार करने का कोई प्रभावी उपक्रम कर रहे हैं ? दरअसल, इस संकट के मूल में जहां राजनीतिक जटिलताएं, सीमा से जुड़ी समस्याएं, पाकिस्तान के षडयंत्र हैं, वहीं युवाओं के लिए रोजगार से जुड़े विकल्पों की भी कमी है।
पंजाब में नशे की समस्या पर सर्वोच्च न्यायालय भी चिन्ता व्यक्त करता रहा है, अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए उसने पंजाब सरकार को फटकार भी समय-समय पर लगाई है। अगर कोई पडोसी देश चाहे तो नशे के आतंक से देश को खत्म कर सकता है। अगर सीमा क्षेत्र सुरक्षित नहीं है तो कैसे सीमाओं की सुरक्षा होगी ? नशा माफिया के आगे बेबस क्यों है पंजाब सरकार ?’ न्यायालय की चिन्ता पंजाब में नशे की गंभीर चुनौती को देखते हुए वाजिब है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी पूर्व में ‘ड्रग्स-फ्री इंडिया’ अभियान चलाने की बात कहकर राष्ट्र की सबसे घातक बुराई की ओर जागृति का शंखनाद किया है। विशेषतः पंजाब के युवा अपनी अमूल्य देह में बीमार फेफड़े और जिगर सहित अनेक जानलेवा बीमारियाँ लिए जिन्दा लाश बने जी रहे हैं पौरुषहीन भीड़ का अंग बन कर। नशे के सेवन से महिलाएं बांझपन का शिकार हो रही हैं। पंजाब में औसत हर रोज १ व्यक्ति की नशे की अधिक खुराक के कारण मौत हो रही है। नशे की चकाचौंध ने जीवन के अस्तित्व पर चिन्ताजनक स्थितियाँ खड़ी कर दी है।
     पाकिस्तान नशे के आतंक से अपने मनसूबों को पूरा कर रहा है। चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ हैं, जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है। मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं, अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है। कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। पाकिस्तान युवाओं को निस्तेज करके एक नए  तरीके के आतंकवाद को अंजाम दे रहा है। पंजाब सरकार की ताजा सख्त कार्रवाई का संदेश नशा माफिया को जाना जरूरी है कि इस काले कारोबार से जुड़े लोगों की दंडमुक्ति संभव नहीं है। इसके अलावा सीमा पार से चलाए जा रहे नशे के कारोबार के लिए पड़ोसी देश को भी कड़ा संदेश जाना चाहिए। पंजाब में नशे की गंभीर चुनौती को देखते हुए सीमा सुरक्षा को फुलप्रूफ करने की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए, जिसमें उच्च तकनीक व एजेंसियों में बेहतर तालमेल की जरूरत है।          पंजाब में राजनीति और नशे का चोली-दामन का संबंध है। बड़े  राजनीतिज्ञ दलों की नशा माफिया एवं नशीले पदार्थों के तस्करों के साथ काफी मिलीभगत है और यही वजह है कि पंजाब ‘नशीले पदार्थों की राजनीति’ के युग से गुजर रहा है। प्रदेश की मौजूदा सरकार ने भी सत्ता संभालते ही २ साल के अंदर नशे का खात्मा करने का एलान किया था, लेकिन जो हालात आज से २ साल पहले थे, वह जस के तस हैं। इससे प्रतीत होता है कि सरकार एवं नशा माफिया का चोली-दामन का संबंध है। 

 पंजाब में पूर्व सरकारों ने जो दावे किए, वे प्रभावहीन ही रहे हैं। वर्ष २०१७ में तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ४ हफ्ते में नशे के कारोबार को खत्म करने का वादा किया था। इससे पहले बादल के नेतृत्व वाली अकाली सरकार की भी नशे के खिलाफ शुरू की गई लड़ाई सिरे नहीं चढ़ सकी। दरअसल, बड़े माफिया के खिलाफ कारगर कार्रवाई न होने के कारण ये अभियान प्रभावी नहीं हो पाते। आखिर क्या वजह है कि भारी पुलिस व्यवस्था के बावजूद नशीली दवाओं की बड़ी खेप पंजाब में आसानी से प्रवेश कर जाती है। यह व्यवस्थागत खामियों की ओर इशारा करती है। दरअसल, दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बिना कोई भी कार्रवाई स्थायी परिवर्तन लाने में विफल ही रहेगी। सीमा पर सख्त नियंत्रण करने, न्यायिक दक्षता और समाज को जागरूक करने की जरूरत है। केन्द्र एवं राज्य सरकार मिलकर नासूर बनती इस समस्या को जड़मूल से समाप्त करने के लिए कमर कसे।