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बचपन लौट के नहीं आता

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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नन्हें बच्चों के पाँव में,
बँधी पायल
ठुमकने से जब बजती,
कानों को दे जाती सुकून।
दादा-दादी की पीठ पर,
नरम-नरम पाँवों से
चलाने का चलन,
अब कहाँ
जिससे कभी,
दिनभर की थकान हो जाती थी
छूमंतर।

नन्हे बच्चों से,
बिस्किट, चॉकलेट की पन्नियां
घरों में बिखरती,
टूटे बिस्किट के कणों को
दोस्त बनकर,
चुगने आ जाती चिड़िया।

दादी के तोतले मुख से,
मीठी लोरियों की आवाज
सपनों की दुनिया में,
परियों के देश ले जाती कभी।

अब कोलाहल में,
सपने गुम
सुबह नींद में आँखें मलते,
बच्चों के मुस्कुराते चेहरे
सारे दिन घर में,
रौनक भर देते।

बचपन होता ही अनोखा,
बचपन को हर कोई
खिलाना चाहता,
एक गोदी से दूसरी गोदी
हर एक के साथ फोटो,
पूरा मोहल्ला दीवाना
बचपन होता ही
जादू भरा।

बेफिक्री आँखों में,
नन्हें खिलौने
नन्हें दोस्त,
नन्ही जिद
नन्हें आँसू,
बचपन में मिलते
बचपन लौट के नहीं आता।

अब तो,
बचपन के ख़्याल
एलबम में देख,
सुकून पा लेते।
बच्चे मोबाइल, टी.वी. देख,
खुद ही सो जाते॥

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंL विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैL देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होL

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