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नारी का समाज में स्थान-दशा व दिशा

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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नारी का हमारे समाज में सबसे महत्वपूर्ण स्थान है,क्योंकि उसके बिना कोई भी पुरुष पूर्ण नहीं है। पुरुष का जन्म भी नारी से ही संभव है। भारतीय संस्कृति के परिपेक्ष्य में नारियों की स्थिति को समझते हुए समस्त मातृशक्ति का नमन-वंदन करने का हमारा नैतिक दायित्व कहीं और प्रगाढ़ हो जाता है।
हम नारी के महत्व अथवा उसके द्वारा भारतीय समाजिक एवं सांस्कृतिक योगदान की बात करें तो अनेक बातें हमारे ध्यान में आती हैं। यह वैदिक मान्यता है कि नारी साक्षात देवी है, उसका सर्वोच्च स्थान हमेशा से समाज में रहा है और हमेशा रहेगा। नारी पूजनीय है,पवित्र है। भारतीय समाज का एक प्रमुख उत्सव रक्षाबंधन जो श्रावणी मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, वो पूर्णतः नारी की श्रेष्ठता और पवित्रता को ही दर्शाता है। भारत में वैदिक काल से ही यज्ञोपवित संस्कार करने का प्रचलन है। यह संस्कार पुरोहितों द्वारा किया जाता था,परंतु समय के अंतराल में जनसंख्या वृद्धि के चलते पुरोहितों के अभाव के कारण घर में ही बहनों द्वारा इस संस्कार को सम्पन्न किया जाने लगा क्योंकि नारी सबसे पवित्र होती है। इसी संस्कार का एक परिवर्तित रूप रक्षा सूत्र बाँधकर रक्षाबंधन उत्सव बनाने का महत्व भी नारी यानि बहनों को समर्पित है-
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः!’
(अर्थात-जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं।)
‘यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः!!’
(अर्थात-जहाँ स्त्रियों की पूजा नहीं होती है,उनका सम्मान नहीं होता है। वहाँ किए गए समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं।)
श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘नारी ही नारायणी है, सृष्टि का आधार है। जननी परमेश्वर की प्रत्यक्ष प्रतिनिधि है। पूरी सृष्टि मुझमें बसती है,परन्तु मैं माता के चरणधूलि में बसता हूँ। जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता हैं,उसकी प्रतिनिधि है नारी अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नहीं है।’
वस्तुत: भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है। परिवार व्यवस्था भारतीय सामाजिक व्यवस्था का आधार स्तंभ है। इसके दो स्तंभ हैं-स्त्री और पुरुष। परिवार को सुचारू रूप देने में दोनों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय के साथ मानवीय विचारों में बदलाव आया है। कई पुरानी परंपराओं,रूढ़िवादिता एवं अज्ञान का समापन हुआ है। महिलाएं अब घर से बाहर आ चुकी हैं,कदम से कदम मिलाकर सभी क्षेत्रों में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दे रही हैं,अपनी इच्छा शक्ति के कारण सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं। विविध क्षेत्रों में अपनी गुणवत्ता सिद्ध कर कुशलता से प्रत्येक जिम्मेदारी के पद को संभालने लगी है।
आज आवश्यकता है यह समझने की,कि नारी विकास की केंद्र है और भविष्य भी उसी का है। स्त्री के सुव्यवस्थित एवं सुप्रतिष्ठित जीवन के अभाव में सुव्यवस्थित समाज की रचना नहीं हो सकती। अतः मानव और मानवता दोनों को बनाए रखने के लिए नारी के गौरव को समझना होगा।
भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्तमान परिपेक्ष्य में महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। उनकी इच्छाओं तथा खुशी के लिए हमें उनका पूर्ण सहयोग करना चाहिए। उनको पूर्ण अधिकार देने चाहिए। किसी कवि ने लिखा है-
‘घर में एक महिला है जो सबका मन रखती है!
बस आप यह न भूलें कि वह भी एक मन रखती है!!’
इन पंक्तियों का सार है कि हमें अपनी माता-बहनों की इच्छाओं को पूर्ण करना चाहिए। उन्हें हर संभव प्रयास से खुशी देनी चाहिए। महिला-दिवस मनाने के लिए केवल एक दिन मात्र पर्याप्त नहीं होना चाहिए,अपितु प्रत्येक दिन हमें महिलाओं के प्रति आदर,सत्कार तथा आस्था भाव से उनका हमेशा सहयोग व सम्मान करना चाहिए। आज नारी ने सभी ओर अपनी श्रेष्ठता के ध्वज फहरा दिए हैं, तो फिर उसे कमतर,हीन या दुर्बल आँकना कहाँ तक उचित है ?
‘नारी की ही यह धरा,नारी का आकाश।
नारी सागर में गई,रचती अब इतिहास॥’

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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