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नेतृत्व के लिए आवश्यक हैं कई गुण

 

कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’
दौसा(जयपुर )
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जी हाँ मित्रों,
नेतृत्व करना एक ख़ास कला है,जो सामान्य व्यक्तित्व के अन्दर नहीं होती। श्रेष्ठतम नेता या नेतृत्व वही बन पाता है,जो लोगों के दिलों पर राज करता है,और जिसका व्यक्तित्व हर कोई स्वीकारता है। ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने वाले लोग अपना सब-कुछ उस पर निछावर करने के लिए तत्पर होते हैं। नेतृत्व कुशलता एक ऐसी कला है,जिसके माध्यम से बहुत आसानी से बड़े-बड़े असंभव कार्यों को भी सरलता के साथ किया जा सकता हैl बिना मार्गदर्शन के आगे बढ़ने में भटकाव ही होता है,और किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं होती हैl बिना नेतृत्व के इकठ्ठी हुई भीड़ से कुछ ख़ास कार्य नहीं कराया जा सकता,वहीं सही नेतृत्व से सेना की एक छोटी-सी टुकड़ी द्वारा भी युद्ध जीता जा सकता हैl आइए जानते हैं उन गुणों को,जो नेतृत्व के लिए आवश्यक हैं-

*अनुशासन प्रिय होना-एक नेतृत्वकर्ता को स्वयं अनुशासित जीवन जीना चाहिए,और समय पर हर काम को पूरा करना चाहिए। ऐसा होने पर ही उसके मातहत और साथी अनुशासित रहेंगेl तभी वे अपने निर्धारित कार्यों को समय पर पूरा करने का प्रयास करेंगेl

*श्रमशीलता-जो व्यक्ति श्रम को ही पूजा मानते हैं,तथा अपेक्षा से अधिक काम करने की चाहत व क्षमता रखते हैं,वे ही अपने सहकर्मियों को और भी अधिक अच्छा करने की प्रेरणा दे सकते हैं।

*उत्तरदायी होना-व्यक्ति को अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार या उत्तरदायी होने के साथ-साथ अपने अंतर्गत काम करने वालों की गलतियों व असफलताओं के दायित्व को स्वीकार करने का साहस भी होना चाहिए।ऐसा किये बिना उनके विश्वास को नहीं जीता जा सकता।

*वस्तुनिष्ठ व्यवहार-सफल नेतृत्वकर्ता के व्यवहार में निष्पक्षता एवं सोच में वस्तुनिष्ठता का गुण होना चाहिएl इसके लिए व्यक्तिगत सम्बन्ध को व्यवसायिक सम्बन्ध से बिलकुल अलग रखा जाना चाहिए।

*साहस-नेतृत्वकर्ता को साहस का परिचय देते हुए चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए और अपना पुरुषार्थ करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से भरपूर और निर्भय नहीं होते हैं,उनके नेतृत्व को बार-बार चुनौतियाँ मिलती रहती हैं,और ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को उसके सहकर्मी लम्बे समय तक स्वीकार नहीं कर पाते।

*स्वनियंत्रण-नेतृत्वकर्ता को अपनी वाणी एवं व्यवहार नियंत्रण में रखना आना चाहिए,क्योंकि नेतृत्वकर्ता के मर्यादाहीन व्यवहार से उसके नियंत्रण में काम करने वाले लोग भी मनमानी करने लगते हैं।

*सही निर्णय लेने की क्षमता-जो व्यक्ति अपने निर्णयों को बार-बार बदलता है,उसकी निष्पक्षता और बुद्धिमत्ता संदिग्ध रहती है। इसीलिए, नेतृत्वकर्ता को ठीक से सोच-विचार कर दूरदर्शिता के साथ सही निर्णय लेना आना चाहिए।

*स्पष्ट योजना-एक सफल नेतृत्वकर्ता केवल अनुमान के आधार पर कोई कार्य नहीं कर सकता। उसे कार्य की योजना बनाना और योजनानुसार कार्य करना आना चाहिए।

*सहानुभूतिपूर्ण सोच-एक नेतृत्वकर्ता को सकारात्मक और सहानुभूतिपूर्ण सोच वाला होना चाहिए। साथ वालों का बुरा न हो,और यथासंभव भला हो,ऐसे व्यवहार से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है।

*शालीन व्यवहार-कहते हैं-“व्यक्ति वाणी से ही दोस्त और दुश्मन बनाता है।” वाणी में मिठास और व्यवहार में शालीनता व्यक्ति को समूह में स्वीकृति दिलवाती है,जो नेतृत्व की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

*सहकारिता की प्रवृत्ति-नेतृत्वकर्ता अपने हर काम को सहकार अर्थात एक सबके लिए,सब एक के लिए की भावना से करता है,तो वो अपने समूह की सफलता में ही अपनी सफलता देखता है।

*अहम् से दूरी-नेतृत्वकर्ता में अपनी कमजोरियों या गुणों के सम्बन्ध में किसी प्रकार की ग्रंथि नहीं होनी चाहिए,उसे अपने अहम् को दूर रख यथार्थ को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए।

*संस्थान के लिए समर्पण भावना-जो अधिकारी अपने संस्थान के हितों के प्रति समर्पित नहीं होता,उसे अपने अधीनस्थों से भी ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए।

*जानकारी की पूर्णता-नेतृत्वकर्ता को अपने संस्थान के प्रत्येक कार्य की थोड़ी या अधिक जानकारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। इसके अभाव में उसको सहायकों द्वारा मुर्ख बनाये जाने की संभावनाएं बढ़ जाती हैंl

*संपर्कों से सुदृढ़ता-नेतृत्वकर्ता का व्यावसायिक और गैर व्यावसायिक क्षेत्रों से भी संपर्क होना चाहिए,और उनकी जरुरत के समय यथासंभव सहयोग भी करना चाहिए। इससे उसे भी अन्य लोगों का सहयोग मिलेगा।

*अनौपचारिक सम्बन्ध-नेतृत्वकर्ता को अपने सम्बन्ध को प्रगाढ़ करने के लिए अपने साथियों की खुशियों में उत्सव मनाने और विपत्ति के समय सहानुभूति व्यक्त करने कि आदत रखना चाहिएl इससे संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ती है।

*अविचल साहस-यह साहस स्वयं के ज्ञान और अपने व्यवसाय के ज्ञान पर आधारित होता है। कोई भी अनुयायी नहीं चाहता कि,उसके नेता या अग्रज में आत्मविश्वास और साहस का अभाव हो। कोई भी बुद्धिमान अनुयायी ऐसे नेता को लंबे समय तक नहीं झेल पाता।

*सहयोग-सफल नेता या नेतृत्व को मिलकर प्रयास करने के सिद्धांत को समझ लेना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिएl अपने अनुयाइयों को भी ऐसा ही करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

*न्यायपूर्ण आचरण-न्यायपूर्ण आचरण के बिना कोई नेता अपने अनुयाइयों का सम्मान न तो हासिल कर सकता है,न ही उसे लंबे समय तक बनाए रख सकता है।

*निर्णय की निश्चितता-जो आदमी ढुलमुल निर्णय लेता है,वह बताता है कि उसे खुद पर विश्वास नहीं हैl ऐसा आदमी दूसरों का सफलतापूर्वक नेतृत्व नहीं कर सकता।

*योजनाओं की निश्चितता-सफल नेतृत्व अपने काम की योजना बनाता है,और योजना पर काम करता है। जो व्यावहारिक और निश्चित योजनाओं के बिना केवल अंदाजे से काम करता है,वह उस जहाज की तरह होता है जिसमें रडार न हो,देर-सबेर वह चट्टानों से टकराकर नष्ट हो जाएगा।

*जितना मिले,उससे ज्यादा देने की आदत- नेतृत्वशीलता की सजाओं में से एक यह है कि,नेतृत्व अपने अनुयाइयों से जितने की आशा करता है, उसे स्वेच्छा से उससे अधिक देने के लिए तैयार रहना चाहिए।

*सुखद व्यक्तित्व-कोई भी बेतरतीब या लापरवाह आदमी सफल नेता या नेतृत्व नहीं बन सकता। नेतृत्वता के लिए सम्मान चाहिए। अनुयायी ऐसे नेतृत्व का सम्मान नहीं करेंगे,जिसे सुखद व्यक्तित्व के सभी तत्वों में अच्छे अंक न मिलें।

*सहानुभूति और समझ-सफल नेतृत्व को अपने समर्थकों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। यही नहीं,उसे उन्हें और उनकी समस्याओं को भी समझना चाहिए।

*विवरण की कुशलता-सफल नेतृत्वशीलता के लिए यह भी जरूरी है कि वह नेतृत्व की स्थिति के विवरण में भी पारंगत हो।

*पूरी जिम्मेदारी लेने की इच्छा-सफल नेतृत्व को अपने समर्थकों की गलतियों और कमियों की पूरी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहना चाहिए। अगर वह इस जिम्मेदारी को दूसरे पर थोप देता है,तो वह नेतृत्वक नहीं बना रहेगा। अगर उसका कोई समर्थक कोई गलती करता है,और अपने-आपको अयोग्य सिद्ध करता है तो नेतृत्व को यह मानना चाहिए कि गलती उसी की है और वही असफल हुआ है।

परिचय : कृष्ण कुमार सैनी ‘राज’ की शिक्षा एम.ए.(राजनीति विज्ञान) और बीएसटीसी(जयपुर )है। आपकी जन्म तिथि-२८ अप्रैल १९९५ है,और पिताजी द्वारा स्थापित फूलों के व्यवसाय को आप भी सम्भालते हैं। निवास राजस्थान राज्य के जिला दौसा स्थित  मारुति कालोनी में है। श्री सैनी की रुचि कविता,ग़ज़ल,गीत,शायरी,मुक्तक,व्यंग्य लिखने में है तो भजन-कीर्तन सुनने का भी शौक है। सम्मान और साहित्यिक उपलब्धि में आपके खाते में बीकानेर में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन(२०१६)में काव्य पाठ करने-सम्मानित होने का सौभाग्य है तो दौसा और जयपुर में भी कवि सम्मेलन में पाठ किया है। जयपुर में २०१६ में कवि सम्मेलन में चंचरीक स्मृति सम्मान,जिले लखीमपुर खीरी में २०१७ में माधव वाजपेयी स्मृति सम्मान,अयोध्या में युवा प्रतिभा सम्मान सहित रचना शतकवीर सम्मान तथा कवि चौपाल सम्मान आदि हैं। आप बीकानेर की साहित्यिक संस्था से दौसा के शाखा अध्यक्ष एवं संस्थापक हैं। सेवा कार्यों में सक्रिय होकर सेवा समिति के माध्यम से गरीबों के लिए भोजन,कपड़ा एवं आवश्यक वस्तुओं का वितरण एवं गर्मियों में जगह जगह पानी व शरबत की प्याऊ लगाते हैं। बच्चों एवं बड़ों को योग सिखाने का कार्य एवं निःशुल्क वृक्ष वितरण,घायल व बीमार पक्षियों का निःशुल्क इलाज करना तथा मासिक काव्य गोष्ठी करना भी शामिल है।

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