मदन गोपाल शाक्य ‘प्रकाश’
फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश)
**************************************
कैसा दर्द उभरता है मन में,
सुख मिलता कहां जीवन में।
बेबस है कोई लाचार बड़ा,
है कोई दर्द के मोड़ खड़ा।
जीवन के दस्तूर समझना,
हर रस्म की नींव परखना।
कदम-कदम पर झेले दिक्कत,
आँखों में बसती सुख चाहत।
गृह क्लेश भूख और प्यासा,
पूर्ण होती नहीं चाही दिलासा।
सोच बड़ी दिक्कत तन में,
कैसा दर्द उभरता है मन में।
है उभरा दर्द गरीबीपन में,
कैसा दर्द उभरता है मन में…॥