संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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इन दिनों गाँव की यात्रा पर हूँ। असमय हुई धुआँधार बारिश के चलते मौसम खुशमिजाज-सा बन चला है। जहां इस समय मई में लू की लपटें चला करती थी, सब दूर रेगिस्तान-सा नजारा बन जाता था, नदियाँ, झील, पोखर, तालाब आखरी साँस गिनते नजर आते थे और सबको बारिश का इंतजार हुआ करता था, वहाँ अबकी बार मौसम ने पूरा चित्र पलट दिया है। मई में ही इस कदर बारिश झमाझम बरसी है कि सारा नजारा ही बदल गया है। सब दूर हरियाली का घना आँचल फैलता जा रहा है, कई जगह नदियाँ झिलमिलाने लगी है और प्रकृति हरियाली के मनोरम गीत गाने लगी है। बड़ा खुशनुमा नजारा उपस्थित हो रहा है।
अचानक बदले इस मौसम के चलते पंछी जगत में अपार हर्ष छा गया है। यहाँ नदिया किनारे खेत में शाम को जैसे ही टहलने निकला, मेड़ पर लगी झाड़ियों में गाने वाले पंछियों का टोला बहुत ही सुरीले गीत गा रहा था। एक सुर में इतने सारे पंछियों को गाते देख स्तब्ध रह गया। पंछियों का समूह गाते- गाते एक झाड़ी से दूसरी में छिप जाता और फिर दूसरा गीत गाने लगता। थोड़ी देर बाद फिर तीसरी झाड़ी में…। गाने का ये सिलसिला चल ही रहा था कि मेरे सिर से ऊपर आसमान में पंछियों की एक लम्बी कतार बड़े मनोहारी तरीके से तैरती हुई निकली जा रही थी। वह विशाल कतार मेरी दृष्टि से ओझल होने लगी, तब तक बगुलों की एक श्वेत धवल लंबी कतार बहुत ही विहंगम तरीके से आसमान से गुजरने लगी। ओह! क्या सुंदर विभ्रम, मैं बगुलों की उस श्वेत कतार को दूर-दूर तक बस निहारता रहा। बादलों भरे काले आसमां तले सफेद झक बगुलों की लंबी-लंबी कतारों को देखना अपने-आपमें आश्चर्यजनक अनुभव था। कितनी ही देर तक अनुशासन से उड़ते उन पंछियों को मैं अपलक निगाहों से देखता रहा। उतने में हजारों चिड़ियों की एक बहुत बड़ी टोली आई और भुर्र से बहुत तेजी से गुजर भी गई। कितनी सुंदर थी वह! मैं खेत की तरफ थोड़ा आगे जाने को हुआ, तब सामनेवाले कटे गेहूँ के खेत से १०-१२ मयूरों का टोला अजीब तरह से ठुमकते हुए गेहूँ के दाने तलाश रहा था। मैं जैसे ही खेत की तरफ बढा, उनमें से पीछेवाले एक मयूर ने मुझे देखा। बड़ी तेजी से वह अपने झुंड की तरफ लपका और सबको खबर करते हुए पूरा टोला देखते ही देखते उस पार अनार के खेत में गायब! गजब की समूह भावना और सबको संभाल लेने की अजीब आत्मीयता का परिचय कराते हुए वह टोला मेरी दृष्टि से अंतर्ध्यान हो गया।
इन सारे पंछियों का दर्शन करते हुए मैं आनंदविभोर हो गया। मन ही मन सोंचा-कितना अनुशासन और हमदर्दी है इन पंछियों में। एक तरफ हम तथाकथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले आदमी, जब देखो तब एक-दूसरे को फँसाने-मरवाने के प्रयास में लगे रहते हैं। स्पर्धा, धोखाधड़ी, छदम राजनीति और द्वेष भरे मानवीय व्यवहार से जब सारी दुनिया त्रस्त है, ऐसे में इन पंछियों में कैसी निरामयता, सहजता, आत्मीयता और अनुशासी भावना है। आधुनिक आदमी को प्रकृति की गोद में जाकर पंछी और प्रकृति से सीखना चाहिए।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।