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पाक सुनो हूंकार

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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पाक सुनो हूंकार को, जागा युवा महान।
विश्व पटल चहुँ मुख घिरे, होगा तुझ अवसान॥

बहुत मचायी दहशत, खेले खूनी खेल।
समझ इसे चेतावनी, करो शान्ति से मेल॥

खून-खराबा नफ़रतें, फैलाये तुम पाक।
युवाशक्ति भारत जगा, अब तुम होगे ख़ाक॥

कब तक चीनी आश मन, रखते पाकिस्तान।
सुनो सैन्य हुंकार को, उद्यत रिपु अवसान॥

थल जल नभ रणबांकुरों, बना काल विकराल।
सबल सैन्य अब भारती, तू है खस्ताहाल॥

पृथिवी तेजस अग्नि अब, बहु त्रिशूल ब्रह्मोश।
भू से आकाश तक, पाक उड़ेंगे होश॥

गांडीवी टंकार फिर, सुनो पाक शैतान।
भारत माँ हूंकार से, दहले पाकिस्तान॥

पांचजन्य राफ़ेल का, सुनो पाक नभ गूंज।
दमक रहा नव शौर्य से, तरुणाई चहुँ पूँज॥

समझ तकाजा वक्त का, महाज्वाल युवशक्ति।
अग्निवीर चहुँ धधकता, देशप्रेम हिय भक्ति॥

करो विदीर्ण शत्रु हृदय, राष्ट्र द्रोह खल देश।
समझ इसे हूंकार अब,आतंकी परिवेश॥

बहु दुश्शासन हृदय को, कर विदीर्ण बन भीम।
बाल सँवारो खून से, भारत पीड़ असीम॥

बाल वृद्ध युव नारियाँ, यौवन लहर तरंग।
भरे शौर्य हूंकार अब, भारत भक्ति उमंग॥

भारत माता की विजय, लक्ष्य एक जन देश।
आर-पार अब समर थल, दलन पाक उपवेश॥

लाखों वीर शहीद का, लेंगे अब प्रतिकार।
भगत चन्द्र रोशन उधम, आज युवा अवतार॥

समझ चुके यौवन वतन, तू है विश्व कलंक।
आतंकी की आड़ में, दे बिच्छू बन डंक॥

निश्चय पाक विनाश अब, सुन ले चीन अधीर।
महाशक्ति भारत बना, शान्ति शक्ति तकदीर॥

शक्ति अलौकिक है युवा, अग्निवीर ख़ुद्दार।
अविरत रक्षा चहुँ वतन, तत्पर रिपु संहार॥

सुधरो चीनी पाक अब, अवसर दे हूंकार।
वरना बर्बादी समझ, पाक अन्त संसार॥

शंखनाद यह कवि कलम, सिंहनाद जयघोष।
सीमा चहुँ सैनिक युवा, पाक दोष प्रति रोष॥

आन-बान शाने वतन, उड़े तिरंगा व्योम।
गूंजे स्वर जय हिंद से, शान्ति प्रेम रस सोम॥

गायन वन्दे मातरम्, राष्ट्र गान मधु गीत।
पाक चीन आतंक तम, विश्वबन्धु हो प्रीत॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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