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हिन्दी ही राष्ट्र की भाषा-राज्यपाल

साहित्य सम्मेलन…

पटना (बिहार)।

हिन्दी भले राष्ट्र भाषा न बनाई गई हो, पर यही राष्ट्र की भाषा है। इसके विकास में हम सबको मिलकर योगदान करना चाहिए। इस भावना के साथ कि यह ‘मेरा काम है, किसी और का नहीं’। इसमें देश को एक सूत्र में जोड़ने की महान क्षमता है। साहित्य को समाज को प्रेरणा देने वाला होना चाहिए।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के ४२वें महाधिवेशन के उद्घाटन के पश्चात बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने शनिवार को यह बात कही। सम्मेलन के संस्थापकों में से एक और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के पुण्य-स्मृति-दिवस की षष्टि-पूर्ति को समर्पित इस महाधिवेशन के उद्घाटन-सत्र में सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने राज्यपाल को सम्मेलन की सर्वोच्च मानद उपाधि ‘विद्या-वाचस्पति’ से विभूषित किया। इस अवसर पर राज्यपाल ने ओडिशा केंद्रीय विवि (कोरापुट) के कुलपति प्रो. चक्रधर त्रिपाठी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और काशी-वाराणसी विरासत फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. राम मोहन पाठक, दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम प्रमुख डॉ. राज कुमार नाहर व काठमाण्डू (नेपाल) की विदुषी हिन्दीसेवी प्रो. कंचना झा सहित २१ विदुषियों और विद्वानों को बिहार की महान साहित्यिक विभूतियों के नाम से नामित अलंकरणों से सम्मानित किया।इसके पूर्व राज्यपाल ने सम्मेलन द्वारा प्रकाशित विदुषी लेखिका डॉ. पूनम आनन्द के लघुकथा-संग्रह ‘१२१ लघुकथाएँ’, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डॉ. कल्याणी कुसुम सिंह की पुस्तक ‘भाग लें’, पर्यावरणविद कवि डॉ. मेहता नगेंद्र सिंह की पुस्तक ‘पेड़ की चिंता’ तथा सम्मेलन पत्रिका ‘सम्मेलन-साहित्य’ के महाधिवेशन विशेषांक का लोकार्पण किया।
अतिथियों का स्वागत महाधिवेशन के स्वागताध्यक्ष और पूर्व सांसद डॉ. रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने किया। अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. सुलभ ने कहा कि साहित्य सम्मेलन देशरत्न की सेवाओं का ऋणी है। उनकी हिन्दी-सेवा किसी भी साहित्यकार से बड़ी है। उनके ही प्रयास और प्रेरणा से बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई। वे हिन्दी की सेवा को ‘देश-सेवा’ ही मानते थे। देश की भावनात्मक एकता और सांस्कृतिक उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि, इसकी कोई एक राष्ट्र-भाषा हो। जिस देश की कोई राष्ट्र-भाषा नहीं होती, वह देश चाहे जितना शोर मचाए, गूंगा ही रह जाता है। सत्र को केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. अनिल शर्मा जोशी, प्रो. पाठक, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डॉ. कुमार अरुणोदय ने भी संबोधित किया। मंच का संचालन डॉ. शंकर प्रसाद ने किया। धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन के प्रधानमंत्री डॉ. शिव वंश पाण्डेय ने किया।

यह भी हुए सम्मानित

समारोह में प्रो. पाठक के अलावा डॉ. शैलेश पण्डित, डॉ. हेमराज मीणा, डॉ. जंग बहादुर पाण्डेय, डॉ. बबीता कुमारी, डॉ. प्रशांत कर्ण एवं श्रीमती निवेदिता श्रीवास्तव गार्गी आदि को विभिन्न अलंकरण से सम्मानित किया गया।

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