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पानी में जहरीले रसायन मिलना चिंताजनक

डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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      'जगत' संरचना में पंच महाभूत से बना है -पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश। इस समय पंच महाभूत दूषित हो रहे हैं। पृथ्वी पर दिन-रात उत्खनन, जंगलों की कटाई और दोहन से जलवायु प्रदूषित हो चुकी है। इसी प्रकार जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। नदियों-तालाबों में घरों की गन्दगी, कारखानों के प्रदूषण से हमारे जल स्त्रोत पूर्णतः दूषित होने से हम प्रदूषित-जहरीला पानी पीने के लिए मजबूर हैं, जिससे हम नित्य संक्रमित होते जा रहे हैं।
  हाल ही में देशभर से एकत्र पीने के पानी के नमूनों में एक जहरीले रसायन के उच्च स्तर का पता चला है, जिसके संपर्क में आने से अंतःस्रावी, प्रजनन और प्रतिरक्षा प्रणाली बाधित हो सकती है।

जहरीला रसायन निर्धारित सीमा से २९ से ८१ गुना अधिक पाया गया है। इस शोध में पूरे भारत से एकत्र पेयजल के नमूनों में ‘नोनीलफेनोल’ के २९.१ से ८०.५ पीपीबी (पार्ट्स प्रति बिलियन) पाए गए हैं, जो कीटनाशकों और चिकनाई वाले तेल एडिटिव्स में एक सूत्र के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला जहरीला रसायन है।
रिपोर्ट के अनुसार-नोनीलफेनॉल जहरीला रसायन है, और मानव स्वास्थ्य पर कई प्रतिकूल प्रभावों से जुड़ा एक प्रसिद्ध अंतःस्रावी अवरोधक है। पीने के पानी के माध्यम से नोनीलफेनॉल का दैनिक सेवन नागरिकों पर प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव डाल सकता है। नोनीलफेनोल का उपयोग आमतौर पर नोनीलफेनोल एथोक्सिलेट्स (एनपीई) के उत्पादन में किया जाता है। एनपीई का उपयोग दिन-प्रतिदिन के उपभोक्ता उत्पादों जैसे-डिटर्जेंट, वेटिंग एजेंट, डिस्पेंसर आदि में किया जाता है।
भारत में भारतीय मानक ब्यूरो ने पीने के पानी (१ पीपीबी) और सतही पानी (प्रति मिलियन ५ भाग) में फेनोलिक यौगिकों के लिए मानक निर्धारित किए हैं। हालांकि, वर्तमान में भारत में पीने और सतही जल में विशेष रूप से नोनीलफेनॉल के लिए कोई मानक नहीं हैं।
अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और चीन जैसे देशों ने पहले ही इस रसायन के खतरों को स्वीकार कर लिया है और डाउन स्ट्रीम स्तर पर जोखिम को कम करने के लिए डिटर्जेंट सहित कई उत्पादों में इसके उपयोग को समाप्त करने के लिए नियमों के साथ आए हैं।
इस प्रकार हम पानी पीने से नित्य रुग्ण हो रहे हैं, जो हमारे लिए बहुत हानिकारक है। इस पर यदि हम जागरूक नहीं हुए तो पूरा देश रोगग्रस्त हो जाएगा।

परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।

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