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पाश्चात्य संस्कृति और हम

ताराचन्द वर्मा ‘डाबला’
अलवर(राजस्थान)
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भटक रही है युवा पीढ़ी,
नित-नित नए ख्वाब लिए
मंजिल का कहीं पता नहीं,
यूँ ही जीवन बर्बाद किए।

पाश्चात्य संस्कृति का रंग,
कूट-कूट कर भर गया है
अर्थहीन आज का युवा,
बीच राह में भटक गया है।

चाल-ढाल भी बदल गई है,
वाणी पर कहीं लगाम नहीं
अर्द्धनग्न को फैशन कहता,
शालीनता का नाम नहीं।

कैसा होगा इनका भविष्य,
बस बिस्तर में पड़े रहते हैं
मोबाइल और इंटरनेट पर,
अपनी नज़रें गड़ाए रहते हैं।

पाश्चात्य संस्कृति और हम,
अब सामंजस्य बिठाना होगा।
लक्ष्य से भटकती युवा पीढ़ी पर,
निश्चित अंकुश लगाना होगा॥

परिचय- ताराचंद वर्मा का निवास अलवर (राजस्थान) में है। साहित्यिक क्षेत्र में ‘डाबला’ उपनाम से प्रसिद्ध श्री वर्मा पेशे से शिक्षक हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कहानी,कविताएं एवं आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। आप सतत लेखन में सक्रिय हैं।

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