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पिता का स्नेह

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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स्नेह पिता का रह-रह कर जब याद मुझे आ जाता है,
आज अकेलापन उनके बिन मुझको बहुत रुलाता है।

बचपन बीत गया मेरा पर पापा मुझसे दूर रहे,
पर जब मिलते कोशिश रहती स्नेह मुझे भरपूर मिले
चले गए क्यों छोड़् हमेशा दर्द ये मुझे सताता है,
आज अकेलापन उनके बिन मुझको बहुत रुलाता है…।

थे कठोर ऊपर से लेकिन भीतर प्यार भरा जितना,
आज समझ में आता है जो सब-कुछ था उनका कहना
उनका स्नेह-प्यार अब भी जीवन दर्शन समझाता है,
आज अकेलापन उनके बिन मुझको बहुत रुलाता है…।

कर्म क्षेत्र और संस्कार सारा कुछ समझाया मुझको,
कर्मठ और आत्मनिर्भर पापा ने है बनाया मुझको
सर से छत का हट जाना कितना मुझको तड़पाता है,
आज अकेलापन उनके बिन मुझको बहुत रुलाता है…।

प्यार बहुत था सीने में पर मुझे दिखाया कभी नहीं,
लेकिन मैंने भी जीवन में उसकी पाई कमी नहीं।
वह मेरा स्वर्णिम युग था, फिर लौट कहाँ अब आता है,
आज अकेलापन उनके बिन मुझको बहुत रुलाता है…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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