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‘पिता प्राण परिवार के’ परिवार एवं समाज के लिए पठनीय कृति

चर्चा….

इंदौर (मप्र)।

ये दोहा संग्रह पिता के हर सकारात्मक और वर्तमान समय में हो रहे नकारात्मक दोनों पहलुओं पर बहुत ही सटीक सरल, सहज शब्दों में अपनी बात व्यक्त करता है। प्रभु त्रिवेदी ने यह कृति अपने लिए सिर्फ न लिखकर वास्तव में समाज को दिशा-दर्शन के लिए लिखी है। ‘पिता प्राण परिवार के’ परिवार एवं समाज के लिए पठनीय कृति है।
यह बात वरिष्ठ पत्रकार, प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ. पुष्पेंद्र दुबे ने परिवार की मुख्य धुरी पिता पर केंद्रित कृति प्रभु त्रिवेदी के दोहा संग्रह ‘पिता प्राण परिवार के’ पर श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के पुस्तकालय कक्ष में एक परिचर्चा-संगोष्ठी में कही। इसमें डॉ. दीपा मनीष व्यास ने कहा कि, इस संग्रह में पिता के अनछुए पहलुओं से परिचय कराया गया है। ऐसी कृतियों को विद्यालय और महाविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए। वीणा के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि वर्तमान में परिवार की बिखरती स्थितियों में प्रभु त्रिवेदी की यह कृति श्रवण कुमार-सी साबित होगी। पुस्तकालय मंत्री हरेराम वाजपेयी ने पुस्तकालय विज्ञान के जनक पद्मश्री डॉ. एस.आर. रंगनाथन की १३०वीं जयंती पर उन्हें तथा समिति के डॉ. सरजूप्रसाद तिवारी को सादर नमन किया। आपने अतिथियों का परिचय कराते हुए संचालन भी किया।
वक्ताओं का स्वागत डॉ. रवींद्र पहलवान व आशीष त्रिवेदी ने किया। आभार संतोष मोहंती ने व्यक्त किया। संगोष्ठी में सर्वश्री त्रिपुरारीलाल शर्मा, प्रचार मंत्री अरविंद ओझा, सदाशिव कौतुक, प्रदीप नवीन, परिचय त्रिवेदी आदि काफी संख्या में सुधीजन एवं साहित्यकार उपस्थित हुए।

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