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पिता से मेरी पहचान

राजबाला शर्मा ‘दीप’
अजमेर(राजस्थान)
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

जग में माँ है बड़ी महान,
पिता भी तो हैं गुणों की खान
पिता पर मुझको है अभिमान,
मैं करती हूँ उनका सम्मान।

कभी बाँहों में झूला झुलाया,
खुद को घोड़ा कभी बनाया
बाग-बगीचों की सैर कराई,
फूलों-पेड़ों का नाम बताया।
ज्यादा नहीं दिया तब ध्यान,
अब याद आता है उनका ज्ञान।
मैं करती हूँ उनका सम्मान…

जो मांगा था वही मिला था,
हरदम ऐसा ही होता था
जादूगर हों कोई जैसे,
ऐसा भान हमें होता था।
हम पर आंच नहीं आने दी,
सारी खुशियां की कुर्बान।
मैं करती हूँ उनका सम्मान…

लड़की नहीं पढ़ाते थे तब,
मगर पिताजी ने पढ़ाया
साइकिल चलाना सिखाया,
कॉलेज में दाखिला करवाया।
जीवन सफल बनाया मेरा,
उनसे ही है मेरी पहचान,
मैं करती हूँ उनका सम्मान…

कभी मैं हो जाती बीमार,
तो फिर बिस्तर से न हटते
जगते सारी-सारी रात,
विनती ईश्वर से करते।
पिता को बारम्बार प्रणाम,
कोई नहीं है उनके समान।
मैं करती हूँ उनका सम्मान…

आज नहीं हैं,वो चले गए,
मेरी इस दुनिया के सिकंदर
उनकी यादें बसी रहेंगी,
हरदम मेरे दिल के अंदर।
संघर्षों से लड़ना,आगे बढ़ना,
और सिखलाया था स्वाभिमान।
मैं करती हूँ उनका सम्मान,
पिता से ही है मेरी पहचान…॥

परिचय– राजबाला शर्मा का साहित्यिक उपनाम-दीप है। १४ सितम्बर १९५२ को भरतपुर (राज.)में जन्मीं राजबाला शर्मा का वर्तमान बसेरा अजमेर (राजस्थान)में है। स्थाई रुप से अजमेर निवासी दीप को भाषा ज्ञान-हिंदी एवं बृज का है। कार्यक्षेत्र-गृहिणी का है। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, गज़ल है। माँ और इंतजार-साझा पुस्तक आपके खाते में है। लेखनी का उद्देश्य-जन जागरण तथा आत्मसंतुष्टि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-शरदचंद्र, प्रेमचंद्र और नागार्जुन हैं। आपके लिए प्रेरणा पुंज-विवेकानंद जी हैं। सबके लिए संदेश-‘सत्यमेव जयते’ का है।

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