पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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पृथ्वी दिवस (२२ अप्रैल) विशेष…
हम सबको आने वाली पीढ़ी को पृथ्वी के महत्व को समझाना और बताना आवश्यक है। प्रकृति और पृथ्वी के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए २२ अप्रैल को ‘अर्थ-डे’ मनाया जाता है। हमें इसे एक दिन के स्थान पर परंपरा या आदत की तरह से मनाने की जरूरत है। आने वाली पीढ़ी बचपन से ही धरती के महत्व को पहचानें, हम सब ऐसी आदत डालें।
इस बार की भूमिका है कि ‘अपने ग्रह पर निवेश करें।’ वैज्ञानिकों का अध्ययन कहता है कि बच्चे यदि प्रकृति के बीच रहते हैं, तो उनका विकास अच्छा होता है। इससे न केवल शारीरिक विकास, वरन् मानसिक विकास भी बेहतर होता है। अमेरिका के प्रो. एलिजाबेथ गेरफ के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला है, कि जो बच्चे पार्क, खुली जगह या मिट्टी में खेलते हैं, उनमें उन बच्चों की अपेक्षा ज्यादा ताकत होती है, जो घर की चार दीवारी के अंदर रहते हैं। बाहर खेलने वाले बच्चों में सहन शक्ति ज्यादा होती है, उन्हें एलर्जी, थकान और जैसी परेशानियाँ भी कम होती हैं। घर से बाहर खेलने वाले बच्चों में अवसाद, तनाव कम होता है। वह बच्चे जल्दी अपने दोस्त बना लेते हैं, ज्यादा सामाजिक होते हैं। प्रकृति के साथ समय बिताने वाले बच्चों में छठी इन्द्रिय ज्यादा होती है।
मोबाइल और अंतर जाल के इस समय में बच्चे बाहर निकलना ही भूलते जा रहे हैं। आज अभिभावक मिट्टी को गंदगी समझते हैं, इसलिए बच्चों को इससे दूर रखते हैं। इटली के बाल मनोविज्ञानी विट्रानों के अनुसार मिट्टी बच्चों के लिए एक उपचार का काम करती है। मिट्टी और रेत से टेढ़ी-मेढ़ी मूर्ति एवं घर बनाने से उनमें रचनात्मकता का विकास होता है। इसलिए आवश्यक है कि हम बच्चों को बाहर बगीचे में प्रकृति के करीब लेकर जाएँ, कैंपिंग करें, ट्रैकिंग करें। नदियों व पहाड़ों से परिचित कराएं, प्रकृति के पास पेड़, फूल व पत्ती से परिचित कराएं। उनके मन में प्रकृति के लिए रुचि पैदा करने का प्रयास करें।
हम पानी और बिजली बचाने के प्रति बच्चों में बचपन से ही आदत डालें। इसके लिए पहले आपको स्वयं की आदत डालनी होगी। विशेषज्ञों का कहना है, कि ३ साल की उम्र से ही बच्चों को पानी और बिजली बचाने, बिजली, पंखा या ए.सी. बंद करने की आदत सिखाना शुरू कर देना चाहिए। उनमें ब्रश करते समय नल को बंद रखने की आदत डालें, इससे ऊर्जा के साथ पैसों की भी बचत होगी।
बच्चे कहानी के माध्यम से बात बहुत जल्दी सीखते हैं, इसलिए उन्हें कहानी सुनाएं।
हमारे देश में प्रकृति को बहुत महत्व दिया जाता है। हमारे पुराने ग्रंथों और पुस्तकों में भी कभी वृक्ष तो कभी नदी या तालाब के साथ गाय आदि से संबंधित कहानियों का भंडार है। इन्हें बच्चों तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य बनता है। बच्चा अपनी संस्कृति और प्रकृति के साथ भी जुड़ेगा।
बच्चों को प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के बारे में बताएं, लेकिन पहले आप स्वयं दूरी बनाने की आदत डालें। बच्चों को पुनर्चक्रण के बारे में भी जानकारी दें।
ऐसे ही गार्डनिंग करें और बच्चों से भी करवाएं। पृथ्वी के लिए पेड़- पौधे बहुत जरूरी हैं। हालांकि, विकास और शहरीकरण के नाम पर पेड़-पौधे काट कर कांक्रीट के जंगल बनाए जा रहे हैं, जो कहीं न कहीं ‘वैश्विक तापमान’ का कारण बन रहा है। इसलिए बच्चों को पेड़- पौधे का महत्व बताएं और साथ में कुछ पौधों की जिम्मेदारी बच्चे को दें। जब उसमें फूल आएंगें तो उसके अंदर रुचि पैदा होगी। आपकी सोसायटी, पार्क या कहीं भी पौधरोपण का कार्यक्रम हो तो बच्चों को लेकर जाएँ।
बच्चों को यह भी बताएं कि नहाने के लिए सीमित पानी का उपयोग करना चाहिए।
बच्चों को बचपन से ही सिखाएं कि इस पृथ्वी की रक्षा करना , उसका रख-रखाव करना उनका कर्तव्य है। उनके लिए ऐसी पुस्तकें लाकर दें, जिससे उन्हें प्रकृति को करीब से जानने का मौका मिले।
ऊर्जा का संरक्षण कैसे कर सकते हैं, आदि की जानकारी जरूर दें।