कुल पृष्ठ दर्शन : 218

निरर्थक संकट में फंसी भाजपा

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************

मुद्दा `नागरिकता संशोधन कानून`…………
कोई कानून हमारी संसद स्पष्ट बहुमत से बनाए और उस पर इतना देशव्यापी हंगामा होने लगे,ऐसा याद नहीं पड़ता। संसद के दोनों सदनों ने ‘नागरिकता संशोधन विधेयक’ पारित किया,जिसके अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आनेवाले शरणार्थियों को भारत की नागरिकता प्रदान की जाएगी,लेकिन यह नागरिकता सिर्फ हिंदुओं,सिखों,ईसाइयों,पारसियों और यहूदियों को दी जाएगी। इन देशों के मुसलमानों को नहीं दी जाएगी ? क्योंकि हमारी सरकार का दावा है कि इन पड़ौसी मुस्लिम देशों के उक्त अल्पसंख्यकों पर काफी अत्याचार होते हैं। उन्हें शरण देना भारत का धर्म है,कर्तव्य है, फर्ज है। इसी फर्ज को निभाने के लिए मोदी सरकार ने यह नया कानून बनाया है।
इसमें शक नहीं कि शरणार्थियों को शरण देना किसी भी सभ्य देश का कर्तव्य है। इस दृष्टि से यह कानून सराहनीय है,लेकिन शरण देने के लिए जो शर्त रखी गई है,वह अधूरी है, अस्पष्ट है और भ्रामक है। भारतीय नागरिकता देने की शर्त यह है कि इन पड़ौसी इस्लामी देशों में गैर-मुस्लिमों पर अत्याचार होता है। मान लें कि यह आरोप सही है तो क्या उसका एकमात्र इलाज यही है कि धार्मिक अत्याचार के बहाने जो भी भारत पर लदना चाहे,उसे हम लाद लें ? भारत आनेवाले इन लाखों लोगों में से आप कैसे तय करेंगे कि कितने लोग धार्मिक उत्पीड़न के कारण शरण मांग रहे हैं ? हो सकता है कि वे बेहतर काम-धंधों के लालच में आए हों, भारत के जरिए अमेरिका और यूरोप जाने के लिए आए हों,अपने रिश्तेदारों के साथ रहने आए हों या उन सरकारों के लिए जासूसी करने के लिए भेजे गए हों। उनके पास तुरुप का बस एक ही पत्ता है कि,वे मुसलमान नहीं हैं। बस,उनकी गाड़ी पार है। हम धार्मिक उत्पीड़न के बहाने भारत को दक्षिण एशिया का अनाथालय क्यों बना देना चाहते हैं ? इसी कारण पूर्वोत्तर के प्रांतों में बगावत की आग भड़की हुई है।
मूल प्रश्न यह है कि उत्पीड़न क्या सिर्फ धार्मिक होता है ? यदि यह सही होता तो १९७१ में बांग्लादेश से लगभग १ करोड़ मुसलमान भागकर भारत क्यों आ गए थे ? पाकिस्तान के अहमदिया,शिया,बलूच,सिंधी और पठान लोग क्या मुसलमान नहीं हैं ? वे भागकर अफगानिस्तान,भारत और पश्चिमी देशों में क्यों जाते हैं ? क्या अफगानिस्तान के शिया,हजारा,मू-ए-सुर्ख,परचमी और खल्की लोग मुसलमान नहीं हैं ? वे वहां से क्यों भागते रहे ? इन तीनों देशों से बाहर भागने वाले लोगों में हिंदू कम और मुसलमान बहुत ज्यादा क्यों हैं ? अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार घोषणा-पत्र और शरणार्थी अभिसमय के अनुसार कोई भी व्यक्ति सिर्फ धार्मिक उत्पीड़न ही नहीं,बल्कि सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक और आनुवांशिक उत्पीड़न से त्रस्त होने पर शरण पाने का अधिकारी होता है। इसीलिए,हमारा यह `नागरिकता संशोधन कानून` अधूरा है। यह कानून सपाट भी है। यह सिर्फ पाकिस्तान,अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों की ही चिंता करता है। क्यों करता है ? क्योंकि १९४७ में बहुत-से गैर-मुस्लिम इन देशों में रह गए थे। वे मूलतः भारतीय ही हैं। यहां पहला सवाल है कि क्या १९४७ में अफगानिस्तान भारत का हिस्सा था ? यदि नहीं तो उसे क्यों जोड़ा गया ? यदि उसे जोड़ा गया तो बर्मा,भूटान,श्रीलंका और नेपाल को क्यों छोड़ा गया ? बर्मा और श्रीलंका तो ब्रिटिश भारत के अंग ही थे। इन देशों के हजारों-लाखों गैर-मुस्लिम शरणार्थी भारत आते रहे हैं। उनमें तमिल,मुस्लिम, ईसाई और हिंदू शरणार्थी भी हैं। दुनिया के पचासों देशों में बसे २ करोड़ प्रवासी भारतीयों पर कभी संकट आया तो वे क्या करेंगे ?
यह ठीक है कि इस नए नागरिकता कानून से भारतीय मुसलमान नागरिकों को कोई नुकसान नहीं है,लेकिन उन्हें क्या हुआ है ? वे क्यों भड़क उठे हैं ? क्योंकि इस कानून के पीछे छिपी सांप्रदायिकता दहाड़ मार-मारकर चिल्ला रही है। भाजपा ने अपने-आपको मुसलमान-विरोधी घोषित कर दिया है। किसे नागरिकता देना,किसे नहीं,यह आपके हाथ में है। इसके लिए गुण-दोष का शुद्ध और निष्पक्ष पैमाना लगाइए और बिना किसी भेद-भाव के नागरिकता दीजिए या मत दीजिए। यही सच्ची हिंदुत्व दृष्टि है।
यदि हिंदुओं के वोट-बैंक को मजबूत करने के लिए यह पैंतरा मारा गया है तो बंगाल,असम, त्रिपुरा और पूर्वोतर के अन्य प्रांतों में सारे हिंदू क्यों भड़के हुए हैं ? वहां की भाजपा सरकारें क्यों हतप्रभ हैं ? यह ठीक है कि इन प्रांतों के कुछ जिलों में शरणार्थी वर्जित हैं लेकिन अभी भी राष्ट्रीय नागरिकता सूची तैयार की गई है,उसमें से १९ लाख लोग बाहर कर दिए गए। उनमें से ११ लाख हिंदू बंगाली हैं। इन सीमांत प्रदेशों में से भाजपा का सूपड़ा साफ होने की पूरी आशंका है। यह देश का दुर्भाग्य है कि पूर्वी सीमांत के प्रांतों में कोई भी अखिल भारतीय दल जम नहीं पा रहा है। भाजपा के इस कानून ने देश के परस्पर विरोधी दलों को भी एकजुट कर दिया है। यह कानून बनाते समय सरकार और हमारे सांसदों ने यह भी ठीक से नहीं सोचा कि इससे अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की प्रतिष्ठा को कितनी ठेस पहुंचेगी। अमेरिकी सरकार और संयुक्त राष्ट्र के मानव अधिकार आयोग ने हमारे इस कदम की कड़ी आलोचना की है। पाकिस्तान के एक हिंदू सांसद और एक हिंदू विधायक ने इस कानून को वहां के हिंदुओं के लिए हानिकारक बताया है। बांग्लादेश,जो भारत का अभिन्न मित्र है,इस कानून से बहुत परेशान है। उसके विदेश मंत्री और गृहमंत्री ने अपनी भारत-यात्रा स्थगित कर दी है। इमरान खान इस कानून की निंदा करें,इसमें कोई अचरज नहीं है। डर यह है कि कहीं अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और प्रधानमंत्री डाॅ. अब्दुल्ला भी भारत की आलोचना न करने लगें। कहीं ये तीनों देश अपने यहां भारत-जैसा कोई जवाबी कानून ही पारित न कर दें। याने वे भारत के अल्पसंख्यकों-मुसलमानों,सिखों,ईसाइयों और दलितों को नागरिकता सहर्ष देने का कानून न बना दें। दुनिया में उनकी जितनी बदनामी होगी,उतनी ही हमारी भी होने लगेगी।
यदि भाजपा सरकार भारत में जनसंख्या का धार्मिक अनुपात सही करना चाहती है,जो उचित है तो उसे चाहिए कि वह ‘हम दो और हमारे दो’ का सख्त कानून बनाए। उसका उल्लंघन करने वालों का जीना भारत में फिर आसान नहीं होगा। सरकार में इतना साहस और आत्मविश्वास होना चाहिए कि वह इस कानून को वापस ले ले। इस फर्जी मुद्दे पर देश का समय बर्बाद करने की बजाय हमारे राजनीतिक दल देश की आर्थिक स्थिति को डावांडोल होने से बचाएं तो बेहतर होगा। यदि सर्वोच्च न्यायालय इस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दे तो वह भारत को इस निरर्थक और फर्जी संकट से बचा सकता है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply