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पोंगापंथी हिंदुत्व और पोंगापंथी इस्लाम

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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आज हमारे विचार के लिए दो विषय सामने आए हैं। एक तो कानपुर के युवा मुहम्मद ताज का,जिसे कुछ हिंदू नौजवानों ने बेरहमी से पीटा और उससे ‘जय श्रीराम’ बुलवाने की कोशिश की,तो दूसरा प. बंगाल से चुनी गई सांसद तृणमूल कांग्रेस की नुसरत जहां का,जिनके खिलाफ देवबंद के किसी मौलवी ने फतवा जारी किया है,क्योंकि उन्होंने किसी जैन से शादी कर ली है,तथा संसद में शपथ लेते समय वे सिंदूर लगाकर और मंगलसूत्र पहनकर आई थीं। ये दोनों मसले ऐसे हैं,जिनमें हमें हिंदुत्व और इस्लाम का अतिवाद दिखाई पड़ता है। इन दोनों मामलों का न तो हिंदुत्व से कुछ लेना-देना है और न ही इस्लाम से ! किसी मुसलमान या ईसाई की हत्या या पिटाई आप इसलिए कर दें कि वह राम का नाम नहीं ले रहा है,यह तो राम का ही घोर अपमान है। आप रामभक्त नहीं,रावणभक्त हैं। आपको अपने-आपको हिंदू कहने का अधिकार भी नहीं है। ‘जय श्रीराम’ तो कोई भी बोल सकता है। कोई भ्रष्टाचारी नेता, कोई पतित पुरोहित,कोई वेश्या,कोई बलात्कारी,कोई चोर और कोई ठग यदि राम का नाम ले ले तो क्या वह पवित्र माना जाएगा ? क्या उस पर कोई हिंदू होने का गर्व करेगा ? जो लोग राम की जगह शिव,कृष्ण,ब्रह्मा,विष्णु आदि को मानते हैं,क्या वे हिंदू नहीं हैं ? कई संप्रदाय राम को मर्यादा पुरुषोत्तम तो मानते हैं लेकिन भगवान नहीं मानते,क्या आप उन्हें भी गैर-हिंदू कहेंगे ? इसी तरह नुसरत जहां को इस्लाम-विरोधी समझना भी बिल्कुल पोंगापंथी इस्लाम है। क्या अरबों की नकल करना ही इस्लाम है ? क्या बुर्का पहनना,तीन तलाक देना,चार-चार बीवियां रखना,अपने अरबी नाम रखना,आदि अरबी प्रथाओं को मानना ही इस्लाम है ? इस्लाम का तात्विक अर्थ यही है कि आप एक ईश्वर को मानें और बुतपरस्ती से बाज आएं। क्या मुसलमान के लिए उर्दू बोलना जरुरी है ? नुसरत अगर बांग्ला बोलती है,इंडोनेशिया के सुकर्ण यदि ‘भाषा’ बोलते हैं,अफगान बादशाह जाहिरशाह ‘पश्तो’ बोलते हैं और अफ्रीकी मुसलमान ‘स्वाहिली’ बोलते हैं तो क्या वे घटिया मुसलमान कहलाएंगे ? उत्तम मुसलमान,उत्तम ईसाई,उत्तम यहूदी और उत्तम हिंदू वही है,जो जिस देश और काल में रहता है,उसके मुताबिक रहे और अपने मजहब की मूल तात्विक बातों को अमल में लाए। डेढ़-दो हजार साल पुराने देश-काल के ढर्रे का अंधानुकरण करना उचित नहीं है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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