कुल पृष्ठ दर्शन : 228

You are currently viewing प्रकाशोत्सव पर्व

प्रकाशोत्सव पर्व

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

*********************************************

दीप जलाएँ आज हम,पावन पर्व प्रकाश।
ननकाना पावन धरा,नानक ज्ञानाकाश॥

कहूँ सन्त,फक्कड़ पथिक,दीन दुखी सरताज।
अवतारी मानव जगत,प्रीति नीति आवाज़॥

संन्यासी निर्मोह जग,कर कुटुम्ब परित्याग।
विविध रूप अनुभूत जन,नानक गुरु अनुराग॥

अवसीदित जनत्रासदी,व्याकुल नानक चित्त।
लोभ स्वार्थ मिथ्या कपट,यवनत्रास आवृत्त॥

देख धर्म की हानि जब,मानवता का ह्रास।
विकल हृदय नानक चला,बना प्रकाश नवास॥

उद्दोलक प्रेरक प्रजा,उत्थानक नव चाह।
सदाचार सद्ज्ञान से,मिटा तिमिर गुमराह॥

ऊँच-नीच दुर्भाव नित,जाति धर्म दुर्नीति।
लखि नानक धर्मान्धता,मिटा जगा नवप्रीति॥

सबका मालिक एक है,पूजन मूर्ति विरोध।
नानक बाँटा प्रेमरस,परहित जीवन बोध॥

प्रथम गुरु नानक नमन,सिक्ख नाम रच धर्म।
सूफी पंथी सन्त बन,चल नानक सत्कर्म॥

मानव-मानव एक है,सबमें प्रभु का वास।
प्रकृति प्रेम परहित सुखी,दी नानक आभास॥

धन्य मातु तृप्ता नमन,पिता राय कल्याण।
प्रिया सुलखनी धर्मिणी,नानक करूँ प्रणाम॥

प्रकृति भाव एकात्म मन,भावुक कोमल चित्त।
धर्म सुधारक दार्शनिक,गृहस्थाश्रम सुवृत्त॥

विश्वबन्धु सद्भावना,देशभक्त कविराज।
सर्वगुणी योगी नमन,नानक जी महाराज॥

पापविरत परहित हृदय,नित नारी सम्मान।
मानवता नैतिक पथिक,नानक देव महान॥

ज्ञाता बहु भाषा विविध,शब्द कुंज अभिराम।
अवगाहन नानक सलिल,हो जीवन सुखधाम॥

कवि ‘निकुंज’ सादर विनत,नानक मत्था टेक।
दीप जलाऊँ शान्ति का,गुरु नानक अभिषेक॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

Leave a Reply