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प्रत्येक अक्षर प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक

हिंदीभाषा डॉट कॉम के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में सम्पादक राकेश शर्मा ने किया लेखकों का सम्मान

इन्दौर।

भाषा को बचाए रखने के लिए हम सबको आगे आना होगा। आज तकनीक का समय है। तकनीक और भाषा मनुष्य की चेतना को बदलती है,यह मनुष्य की चेतना को संचालित करती है। संवेदना वाले साहित्य का सृजन कम हो चला है। लिखने के लिए पात्र,घटना और अक्षर नहीं मिलते हैं। अपनी भाषा से पोर्टल के माध्यम से जुड़ें। भाषा से ही संस्कृति बची रहती है। प्रत्येक अक्षर प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचायक है।


यह बात प्रतिष्ठित पत्रिका ‘वीणा’ के सम्पादक श्री राकेश शर्मा ने देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के तक्षशिला परिसर स्थित मीडिया भवन में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में कही। अवसर था हिंदीभाषा के बढ़ावे के लिए कार्यरत लोकप्रिय पोर्टल हिंदीभाषा डॉट कॉम के पहले स्थापना दिवस के मौके पर विजेता रचनाकारों को सम्मानित करने का। शुरुआत में अतिथि श्री शर्मा का स्वागत शाल-श्रीफल से पोर्टल के संस्थापक-सम्पादक अजय जैन ‘विकल्प’ और संयोजक सम्पादक एवं पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ.सोनाली नरगुंदे ने किया। तत्पश्चात अतिथि परिचय संचालन कर रही प्रो.कामना लाड़ ने दिया। पोर्टल की प्रचार प्रमुख सुश्री नमिता दुबे ने डॉ.नरगुंदे और श्री जैन का परिचय दिया।
श्री शर्मा ने इस मौके पर बड़ी बेबाकी से हिंदी की दशा पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हिंदी का विकल्प हिंदी ही है। आपने संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सर्वे कि २०४० में भाषाएँ कैसी होंगी,से बताया कि सिर्फ तीन भाषाएं ही बचेंगी। आपका स्पष्ट कहना रहा कि हिंदी भाषा बचेगी तो हम बचेंगे। आपने पत्र लेखन के शब्द ‘कुशल’ का ‘कुश’ यानि घास से जुड़ा रोचक किस्सा सुनाया।
इस मौके पर पोर्टल को आपने शुभकामनाएं देते हुए हिंदी के लिए किए जा रहे कार्य को सराहा। मुख्य अतिथि श्री शर्मा ने पोर्टल द्वारा आयोजित दो स्पर्धाओं के विजेताओं विजय सिंह चौहान,डॉ.पूर्णिमा मंडलोई,डॉ.रीता जैन,देवेन्द्र सिंह सिसोदिया,कार्तिकेय त्रिपाठी ‘राम’ और श्रीमती मीना गोदरे ‘अवनि’ को पुरस्कृत किया।
कार्यक्रम में रचनाकारों के साथ ही हिंदीभाषा परिवार के तकनीकी प्रमुख चेतन बेंडाले और पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थी भी उपस्थित रहे। आभार वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत पंडित ने माना।

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