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प्रभु की दया

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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कोई न संग साथी, चौबीस वर्ष बीते।
हमने इन्हीं दिनों में, मन-प्रेम, चैन जीते।
प्रभु की दया बनी है, दु:ख-दर्द जो मिटाते।
वे ही विकल्प देते, संकल्प हम सजाते॥

हर एक दर्द मिटता, नारायणी कृपा से,
हर साॅंस चैन लेती, भगवान की दया से।
उनकी दया सभी का, जीवन यहाॅं खिला दे,
प्रभु दीप ऑंधियों में, जब चाह लें जला दें।
आओ सभी मनीषों, मिलकर उन्हें बुला लें,
मन में लगन दिखे तो, वे दु:ख सभी मिटाते॥
कोई न संग साथी…

हर जिन्दगी सजाते, है बन्दगी उन्हीं से,
उनकी दया सभी पर, हो कब कहाॅं कहीं से।
किसने हमें सजाया, हम खुद न जानते हैं,
विश्वास है उन्हीं पर, जिनको ‘भी’ मानते हैं।
हर एक जिन्दगी को, भव पार वे लगाते,
मुश्किल मगर न जीवन दस्तूर को निभाते॥
कोई न संग साथी…

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।