ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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ग्रंथ काव्य वैदिक विदित, धर्म शास्त्र नैतिक वाला,
पौराणिक धूमिल समझ कर, कलयुग बन्द किया ताला।
सार निचोड़ ज्ञान दर्पण था ,सरल सरस व मंत्रद्रष्ट्रा,
जीवन शैली ज्ञान आधुनिक, स्वयं ही है अष्टावक्रा।
महाकाव्यों महाग्रंथों की, कुछ दुष्ट दुराग्रही दुर्मुख,
अपमान आज करते अपनी, पाने स्वारथ सत्ता सुख।
मानव विकास क्रमशःगाथा, चार युग में समाहित है,
अक्षर बन पन्नों में सतत जो, गंगा सँग प्रवाहित है।
दुर्गंधित दुर्बुद्धि से करते ये, तोड़-मोड़ विवेचना में,
नहि सोंचते लिखा कहा क्यों, रत रहे आलोचना में।
सागर से गागर भर लाये, बैठे गागर बन दादुर,
वही लोग सागर को चिढ़ाते, यही लोग कलि के पातुर।
अंधा बन सत्ता धन मद में, लोग लड़ाये लोगों से,
अन्यों के लिए नित नियम बना, लिपट रहे स्व भोगों से।
खींच चुम्बकीय आकर्षण से, अपराध अन्याय करते,
श्रेष्ठजनों के दोष खोजते, सम वैचारिक युग्म रहते।
कलि बांधा नेत्र मानवों की, पट्टी एक विनाशकारी,
निजहित का देख नहीं सकता भला कर्म कल्याणकारी।
विषय विकार वासना फंसा, मानवता किया कलंकित,
हृदय में जिसके मैल भरा, रह न पाएगा वह पुलकित॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।