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बचपन की संगिनी…याद आती है.

दीपक शर्मा

जौनपुर(उत्तर प्रदेश)

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मुझे मेरे बचपन की संगिनी,
बहुत याद आती है…
बहुत याद आती हैl

जो कभी मेरी
किताबें चुरा लेती थी,
तो कभी बस्ता ही गायब कर देती थी
और कभी-कभी कलम से,
रिफिल ही निकाल लेती थीl
वो पगली,मुझे
परेशान कर-करके रुला देती थी,
फिर खुद ही बता देती थीl
वह मेरे साथ
अप्रैल-फूल रोज मनाती,
मुझे मेरे बचपन की संगिनी
बहुत याद आती है।

वो कभी अपनी कोमल हथेलियों से
मेरी आँखें झप लेती थी,
तो कभी
अपनी कानी उँगली
मेरे कान में घुसेड़ देती थी,
तो कभी मेरे सिर से
टोपी उतारकर
खुद के सिर पे रख लेती थी,
उसके साथ रोज-रोज की लड़ाई
और रोज-रोज के झगड़े से
मिली मुक्ति,
अब बहुत सताती है…
मुझे मेरे बचपन की संगिनी
बहुत याद आती है।

मेरे नाम का पहला अक्षर
वो रोज लिखती,
रोज मिटाती थी
मेरे लिए टिफिन में
घर से पराठे रोज लाती थी,
मेरे संग बैठकर
वह बेखौफ
खूब हँसती
खूब मुस्कुराती थी,
उसकी वह निश्चल प्रीति
आज भी मेरी आँखों को
सजल कर जाती है,
मुझे मेरे बचपन की संगिनी
बहुत याद आती हैll

परिचय-दीपक शर्मा का स्थाई निवास जौनपुर के ग्राम-रामपुर(पो.-जयगोपालगंज केराकत) उत्तर प्रदेश में है। आप काशी हिंदू विश्वविद्यालय से वर्ष २०१८ में परास्नातक पूर्ण करने के बाद पद्मश्री पं.बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक से नवाजे गए हैं। फिलहल विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।आपकी जन्मतिथि २७ अप्रैल १९९१ है। बी.ए.(ऑनर्स-हिंदी साहित्य) और बी.टी.सी.( प्रतापगढ़-उ.प्र.) सहित एम.ए. तक शिक्षित (हिंदी)हैं। आपकी लेखन विधा कविता,लघुकथा,आलेख तथा समीक्षा भी है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कविताएँ व लघुकथा प्रकाशित हैं। विश्वविद्यालय की हिंदी पत्रिका से बतौर सम्पादक भी जुड़े हैं। दीपक शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-देश और समाज को नई दिशा देना तथा हिंदी क़ो प्रचारित करते हुए युवा रचनाकारों को साहित्य से जोड़ना है।विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा आपको लेखन के लिए सम्मानित किया जा चुका है।

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