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बच्चों के मोबाइल की निगरानी आवश्यक

पद्मा अग्रवाल
बैंगलोर (कर्नाटक)
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आज मोबाइल फोन हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं करना चाहता। निश्चित रूप से मोबाइल से समाज में सुविधाओं की क्रांति आ गई है, परंतु इसकी वजह से होने वाले नुकसान भी बढ़ते जा रहे हैं।

आज ऑफिस में मानव की बॉस के साथ कुछ कहा-सुनी हो गई थी, इसलिए उनका मूड ऑफ था, सिर में भी दर्द हो रहा था। वह ऑफिस से जल्दी आ गए। पत्नी हेमा को अपने फोन में बिजी देख कर वह बोले,- “एक कप अदरक वाली स्ट्रांग चाय बना कर कमरे में दे देना, मेरा सिर दर्द से फट रहा है।”
बेटी आयुषी की निगाहें अपने फोन पर थीं और बेटा हमेशा की तरह फोन में गेम खेलने में बिजी था। आधे घंटे तक वह कमरे में लेट कर चाय का इंतजार करते रहे। फिर गुस्से में तमतमाते हुए बाहर आये तो कमरे का वही नजारा था। उन्होंने आव देखा न ताव, पत्नी के हाथ से मोबाइल छीन कर जमीन पर पटक दिया… “न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी”, चाय मिलनी तो दूर की बात हो गई… पति-पत्नी के बीच में जोर की महाभारत हो गई। नतीजा यह हुआ कि उन्हें ही ३० हजार का नया मोबाइल खरीद कर पत्नी को देना पड़ा।
काव्या अपनी बेटी को सेरेलक खिलाना चाह रही थी, लेकिन वह चम्मच देखते ही मुँह फेर कर जोर- जोर से रोने लगती। उसने परेशान होकर अपने फोन पर उसका मनपसंद कार्टून लगा कर फोन पकड़ा दिया। वह तुरंत रोना भूल कर कार्टून देखती हुई खाने लगी। अब तो रोज की बात हो गई, बिना फोन पकड़े रिद्धि खाना मुँह में नहीं लगाती थी, मजबूर होकर काव्या को अब बेटी के हाथ में मोबाइल देना ही पड़ता था।
सौम्या हो या काम्या, बड़ी शान से कहती हुई देखी-सुनी जाती है, कि उनकी बेटी या बेटा जो अभी ३ साल का है, अपना मनपसंद गाना, कार्टून या कहानी लगा कर देखती रहती है।
ऐसे मोबाइल और इंटरनेट हमारे जीवन में रच-बस गया है। इसने जीवन को आसान और रोचक बना दिया है। अधिकतर महिलाएं रोते हुए बच्चे को चुप कराने, उसे खाना खिलाने, अपना घरेलू काम निबटाने और टी.वी. पर मनपसंद नाटक देखने के लिए आधे समय उनके हाथ में मोबाइल देती हैं। इस तरह निष्कर्ष यह है,कि बचपन से ही आज की पीढी मोबाइल या इंटरनेट के संपर्क में है।
१५ वर्षीय रोहन (कक्षा ९ का छात्र) प्रोजेक्ट करना है, के बहाने से गंदी वेबसाइट देखने लगा। जब विद्यालय में पिछड़ने की शिकायत घर पर आई, तब उसकी माँ की आँखें खुली और बेटे के फोन की निगरानी करनी शुरू की।
आजकल वीडियो गेम खेलना, बातचीत करना, गलत लोगों से दोस्ती करना, उल्टी-सीधी साइट पर जाने से बच्चे अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हैं। इसलिए यह बहुत आवश्यक हो गया है कि अभिभावक अपने बच्चों के फोन पर निगरानी रखें और सही-गलत का ज्ञान-अनुभव कराएं।
एंड्राइड फोन और इंटरनेट के कारण आज पूरी दुनिया सबकी मुट्ठी में आ गई है। य़दि थोड़ी देर के लिए भी इंटरनेट बंद हो जाता है तो जीवन पंगु हो उठता है। इंटरनेट के मामले में हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा देश है। एक सर्वे में बताया गया है, कि लगभग ८२ ड
फीसदी लोग नेट के बिना २४ घंटे भी नहीं बिता पाते हैं। नेट से जुड़ाव और नशे के कारण अपनी सेहत की भी परवाह नहीं करते हैं।
युवाओं को ऑनलाइन रहने की लत हो जाती है, जिससे देर से सोते हैं। हालत यहाँ तक है कि आँख खुलते ही पहले अपने सन्देश और नोटिफिकेशन जाँचते हैं।
ऐसे ही ५ फीसदी लोग तो खाना, सफाई आदि काम और परिवार के लोगों के बीच भी इंटरनेट में व्यस्त रहते हैं। २८ प्रतिशत लोग बातचीत करते-करते भी इंटरनेट का प्रयोग और १९ फीसदी ही संयम से प्रयोग करते हैं। ६४ प्रतिशत यह मानते हैं कि नेट पर रहने से उनकी पहचान प्रभावित होती है, जबकि ३ प्रति. ने स्वीकार किया है कि इंटरनेट के कारण उनका पारिवारिक जीवन प्रभावित हुआ है।
इंटरनेट पर अनगिनत साइट खोली जा सकती है। बच्चे जहां बड़ी आसानी से इंटरनेट दोस्ताना हो रहे हैं, वहीं अनजाने ही कई प्रकार के दुष्प्रभावों की गिरफ्त में आ जाते हैं। किशोर वय बहुत सी गोपनीय बातें भी कई तरह के प्रलोभन की लालच में नेट पर साझा कर देते हैं, जिससे वह मुसीबत में पड़ जाया करते हैं। कई बार तो किसी गिरोह के हत्थे भी पड़ जाते हैं। हिंसा, अश्लीलता और नशा परोसती साइट्स निश्चित रूप से अल्पायु या युवा वर्ग के बच्चों के बौद्धिक विकास को बाधित करके गलत मार्ग पर ले जा रही है। दुष्कर्म की बढ़ती घटनाएं और हत्या जैसे अपराधों के पीछे भी ये कुछ हद तक जिम्मेदार कही जा सकती हैं। इंटरनेट के बढते दुष्प्रभावों ने आज बच्चों के अभिभावकों को चिंता में डाल रखा है। इसलिए जिम्मेदारी है, कि अपने बच्चों के फोन पर अपनी निगाह रखें और समय-समय पर जाँच करते रहें। इसके लिए फिल्टरिंग एक बेहतर तरीका है, जिसमें यह सुविधा है कि बच्चे ऐच्छिक साइट्स ही खोल सकते हैं। यदि संभव हो सके तो अपनी देखरेख में ही नेट सर्फिंग करने दें।
इस दिशा में शिक्षकों और नेट विशेषज्ञों के परामर्श से वेबसाइट की सूची तैयार की जाए, जो बच्चों के लिए उपयोगी और आवश्यक है। पालकों को ब्राउजिंग इतिहास पर जाकर यह अवश्य देख लेना चाहिए कि उनके नौनिहाल कौन सी साइट्स को तलाश रहे हैं। इसके साथ ही मित्र बन कर बच्चों को सही-गलत की जानकारी अभिभावक से अच्छा कोई नहीं दे सकता।
अपने बच्चे के फोन पर नेट की समय सीमा बनाकर, अशैक्षणिक एप को ब्लाक करके, अश्लील वेबसाइट को बंद करके एवं सेफ ब्राउजर की मदद से भी बचा जा सकता है। सबसे आवश्यक है कि बच्चा किससे-कितनी देर बात करता है, इसकी जानकारी अवश्य रखें।