कुल पृष्ठ दर्शन : 178

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?

विनोद वर्मा आज़ाद
देपालपुर (मध्य प्रदेश) 

************************************************

जिन पालकों के पास थोड़ा-बहुत पैसा आना शुरू होता है,वह अपने बच्चों को अशासकीय विद्यालयों में प्रवेश करा देते हैं। रेत छानने के चलने में से बारीक रेत छन जाती है,व अनुपयोगी बंडे अलग रख दिये जाते हैं,वैसे ही अत्यंत दयनीय आर्थिक स्थिति वाले पालकों के अधिकांश बच्चे शासकीय विद्यालयों में प्रवेश लेते हैं। उनके प्रवेश के लिए भी शिक्षकों को काफी मशक्कत करना पड़ती है। देखा जा रहा है झोपड़पट्टियों,पन्नी-बोतल,लोहा-लंगर बीनने वालों,सस्ता सामान बेचने वालों,भिक्षावृत्ति करने वालों दाड़की,दानी-दस्सी करने वालों के बच्चे लगभग शासकीय विद्यालयों में पढ़ रहे हैंl कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि,क्रीम निकालने के बाद बची हुई छाछ प्रवेशित होती हैl ऐसे छात्र चुनौती के रूप में स्वीकार किए जाकर छाछ में से पुनः मंथन कर क्रीम निकालने का दुष्कर कार्य आज शिक्षक को करना पड़ रहा है। अपवाद कुछ आदर्शवादी पालक जरूर अपने बच्चों को शासकीय संस्थानों में अब प्रवेश दिला रहे हैं
प्रातः ८ से ८-३० पर पालक अपने कर्म-कर्तव्य स्थल के लिए निकल पड़ते हैंl विद्यालय का समय सभी जगह लगभग एक जैसा ही है प्रातः १०-३० बजे से….l शासन की एक अच्छी पहल है-सब पढ़ें-सब बढ़ें। सबका मान बढ़ाना है,स्कूल हमको जाना है,
के तहत कोई भी बच्चा-बच्ची शिक्षा से वंचित न रहे,प्रवेश अनिवार्य करने की वजह से शिक्षकों को प्रत्येक बच्चे का नामांकन करके उसे पढ़ाना ही है,लेकिन पालक बच्चों की ओर ध्यान न देकर मजदूरी में ही लगे रहते हैं। ऐसे में पूर्ण समर्पित इक्का-दुक्का शिक्षक पहल कर प्रातः ६,७,८ बजे या संध्या समय के वक़्त पालकों से मिलकर बच्चों को विद्यालय में प्रवेश के लिए समझाइश देते हैंl उन्हें पुस्तकें, शिक्षण सामग्री तथा गणवेश के साथ पौष्टिक मध्यान्ह भोजन देने सम्बन्धी जानकारी तथा भविष्य का सपना दिखलाकर प्रवेश करवाते हैं।
अब परेशानी यह कि छात्र कभी विद्यालय आ रहे हैं,तो कभी गली-मोहल्ले के बच्चों के बीच खेलने लग गए,तो कभी शिक्षक छात्रों को ढूंढकर-पकड़कर लाते हैं,ऐसी आम बात देखने को मिलती है। फिर कागजी खानापूर्ति के लिए पालकों को समझाईश के बावजूद जन्म-प्रमाण-पत्र उपलब्ध न होना,अगर हो तो राशन कार्ड में बच्चे का नाम नही,नाम चढ़वाने,आधार कार्ड नहीं है तो बनवाने का कहना,है तो एसएसएसएमआईडी क्रमांक लाने का कहनाl इसी में कई दिन बिगड़ते हैं। इसमे भी सबसे ज़्यादा घुमक्कड़ जातियों एवं बाहर दूर- दराज से आये मजदूर वर्ग के बच्चों के दस्तावेज तैयार करवाने में काफी परेशानी के साथ वक्त भी जाया होता है। इस प्रकार धीमे-धीमे बच्चों का शिक्षा के मंदिर में ठहराव के साथ स्थिति में परिवर्तन होना प्रारम्भ हो जाता है।
फिर ‘अनार’ का,’आम’ का शुरू होता हैl १,२,३,४,५ तक अंक और ए,बी,सी भी पट्टियों पर चॉक-पेम से उंगली पकड़ कर बच्चों को लिखवाने की पुरातन पद्धति का निर्वहन शुरू हो जाता हैl
वर्तमान में नवप्रवेशित छात्रों को शासन स्तर पर ‘अंकुर’ नाम दिया जा रहा है,पर पालकों की लापरवाही के कारण बच्चे कभी आते हैं,तो कभी गायब हो जाते हैं। ‘अंकुर’ से छात्र को ‘तरुण’ और फिर ‘उमंग’ तक लाना एक त्रिवेणी पेड़ को तैयार करने के समान होता है।

परिचय-विनोद वर्मा का साहित्यिक उपनाम-आज़ाद है। जन्म स्थान देपालपुर (जिला इंदौर,म.प्र.) है। वर्तमान में देपालपुर में ही बसे हुए हैं। श्री वर्मा ने दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर सहित हिंदी साहित्य में भी स्नातकोत्तर,एल.एल.बी.,बी.टी.,वैद्य विशारद की शिक्षा प्राप्त की है,तथा फिलहाल पी.एच-डी के शोधार्थी हैं। आप देपालपुर में सरकारी विद्यालय में सहायक शिक्षक के कार्यक्षेत्र से जुड़े हुए हैं। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत साहित्यिक,सांस्कृतिक क्रीड़ा गतिविधियों के साथ समाज सेवा, स्वच्छता रैली,जल बचाओ अभियान और लोक संस्कृति सम्बंधित गतिविधियां करते हैं तो गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षण सामग्री भेंट,निःशुल्क होम्योपैथी दवाई वितरण,वृक्षारोपण,बच्चों को विद्यालय प्रवेश कराना,गरीब बच्चों को कपड़ा वितरण,धार्मिक कार्यक्रमों में निःशुल्क छायांकन,बाहर से आए लोगों की अप्रत्यक्ष मदद,महिला भजन मण्डली के लिए भोजन आदि की व्यवस्था में भी सक्रिय रहते हैं। श्री वर्मा की लेखन विधा -कहानी,लेख,कविताएं है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचित कहानी,लेख ,साक्षात्कार,पत्र सम्पादक के नाम, संस्मरण तथा छायाचित्र प्रकाशित हो चुके हैं। लम्बे समय से कलम चला रहे विनोद वर्मा को द.साहित्य अकादमी(नई दिल्ली)द्वारा साहित्य लेखन-समाजसेवा पर आम्बेडकर अवार्ड सहित राज्य शिक्षा केन्द्र द्वारा राज्य स्तरीय आचार्य सम्मान (५००० ₹ और प्रशस्ति-पत्र), जिला कलेक्टर इंदौर द्वारा सम्मान,जिला पंचायत इंदौर द्वारा सम्मान,जिला शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा सम्मान,भारत स्काउट गाइड जिला संघ इंदौर द्वारा अनेक बार सम्मान तथा साक्षरता अभियान के तहत नाट्य स्पर्धा में प्रथम आने पर पंचायत मंत्री द्वारा १००० ₹ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। साथ ही पत्रिका एक्सीलेंस अवार्ड से भी सम्मानित हुए हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-एक संस्था के जरिए हिंदी भाषा विकास पर गोष्ठियां करना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा के विकास के लिए सतत सक्रिय रहना है।