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गौरेया अँगना में आजा..

संजय वर्मा ‘दृष्टि’ 
मनावर(मध्यप्रदेश)
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गौरेया इंसानों के साथ रहने वाला छोटा पक्षी(चिड़िया) वर्तमान में विलुप्ति की कगार पर जा पहुंचा है। ये छोटे-छोटे कीड़ों को खाकर प्रकृति का संतुलन बनाए रखने में सहायक है। गौरेया के कम होने का कारण विकिरण का प्रभाव तो है ही,इसके अलावा उनकी देखभाल पर इंसानों का ध्यान कम देना भी रहा है। पाठ्यक्रमों में दादी-नानी की सुनाई जाने वाली कहानियों में और फ़िल्मी गीतों,लोक गीतों,चित्रकारी आदि में गौरेया का जिक्र सदैव होता आया है। घरों में फुदकने वाला नन्हा पक्षी प्रकृति के उतार-चढ़ाव को पूर्व आकलन कर संकेत देता आया है। सुबह होने के पूर्व चहकना,बारिश आने के संकेत-धूल में लौटना,छोटे बच्चे जो बोलने में हकलाते हैं-उनके मुँह के सामने गौरेया को रखकर हकलाने को दूर करना,हालांकि ये टोटका ही माना जाएगा। खैर,चित्रकारी में तो सबसे पहले बच्चों को चिड़िया (गौरेया) बनाना सिखाया जाता है। कहने का तात्पर्य ये है कि गौरेया इंसानों की सदैव मित्र रही और घर की सदस्य भी। क्यों ना हम गौरेया व अन्य पक्षियों के लिए गर्मियों के दिनों में छांव,पानी,दाना की व्यवस्था कर पुण्य कमाएं। किसान अपने खेत में कुछ हिस्सों में बाजरा भी लगाते हैंl उनका उदेश्य गौरेया के प्रति दाना प्रदान करना रहता है। गौरेया की सेवा को गर्मियों में एक बार आजमा के देखो,मन को कितना सुकून मिलता है।इन्हीं कुछ आसान उपायों से फिर से घरों में फुदक सकती है हम सबकी प्यारी गौरेया-

“मेरी दोस्त गौरेया,

दस्तक मेरे दरवाजे पर
चहकने की तुम देती गौरेयाl
चाय,बिस्किट लेता मैं
तुम्हारे लिए रखता
दाना-पानी,
यही है मेरी पूजाl
मन को मिलता सुकून
लोग सुकून के लिए,
क्या-कुछ नहीं करते
ढूंढते स्थानl
गोरैया का घोंसला
मकान के अंदर,
क्योंकि वो संग रहती
इंसानों के साथl
हम खाएं और वो

घर में रहे भूखी…
ऐसा कैसे संभवl
दान और सुकून,
इन्हें देने से स्वतः
आपको मिलेगाl
हो सकता है हम,
अगले जन्म में बनें गौरेया
और वो बने इंसानl
दोस्ती-सहयोग,
कर्म के रूप में
साथ रहेंगेll”

परिचय-संजय वर्मा का साहित्यिक नाम ‘दॄष्टि’ है। २ मई १९६२ को उज्जैन में जन्में श्री वर्मा का स्थाई बसेरा मनावर जिला-धार (म.प्र.)है। भाषा ज्ञान हिंदी और अंग्रेजी का रखते हैं। आपकी शिक्षा हायर सेकंडरी और आयटीआय है। कार्यक्षेत्र-नौकरी( मानचित्रकार के पद पर सरकारी सेवा)है। सामाजिक गतिविधि के तहत समाज की गतिविधियों में सक्रिय हैं। लेखन विधा-गीत,दोहा,हायकु,लघुकथा कहानी,उपन्यास, पिरामिड, कविता, अतुकांत,लेख,पत्र लेखन आदि है। काव्य संग्रह-दरवाजे पर दस्तक,साँझा उपन्यास-खट्टे-मीठे रिश्ते(कनाडा),साझा कहानी संग्रह-सुनो,तुम झूठ तो नहीं बोल रहे हो और लगभग २०० साँझा काव्य संग्रह में आपकी रचनाएँ हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर ३८ साल से रचनाएँ छप रहीं हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में देश-प्रदेश-विदेश (कनाडा)की विभिन्न संस्थाओं से करीब ५० सम्मान मिले हैं। ब्लॉग पर भी लिखने वाले संजय वर्मा की विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-मातृभाषा हिन्दी के संग साहित्य को बढ़ावा देना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद,तो प्रेरणा पुंज-कबीर दास हैंl विशेषज्ञता-पत्र लेखन में हैl देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-देश में बेरोजगारी की समस्या दूर हो,महंगाई भी कम हो,महिलाओं पर बलात्कार,उत्पीड़न ,शोषण आदि पर अंकुश लगे और महिलाओं का सम्मान होl

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