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बच्चों को मत बाँटिए

दिनेश चन्द्र प्रसाद ‘दीनेश’
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
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मॉं-बाप के अहं में आज बच्चे पिसते हैं,
दोनों के प्यार की जगह पर झिड़की सहते हैं।

है अगर छोटा बच्चा मॉं के हिस्से आता है,
है अगर वो बड़ा तो बाप के हिस्से जाता है।

कैसी है ये अपनी आज समाज व्यवस्था!
एक मासूम का दर्द कोई नहीं है समझता।

अपनी मौज-मस्ती हेतु मॉं-बाप अलग होते हैं,
बच्चे के जीवन में भूचाल वे छोड़ जाते हैं।

मिलता नहीं है किसी को बाप का नाम,
तरसता है कोई, मिले उसे ममता की शाम।

मम्मी चली जाती है दफ्तर में काम करने,
बच्चे को छोड़ जाती है वो आया के घर में।

कहाँ से सीखेंगे बच्चे अपनी संस्कृति-संस्कार!
इस तरह से जब बिखरते रहेंगे हमारे परिवार।

मॉं-बाप के संग बच्चों को, बच्चों का साथ चाहिए,
बुरा असर पड़ेगा उसके जीवन पर, ये रूकना चाहिए।

क्या करेंगे मॉं-बाप इतना धन- दौलत कमाकर,
अपने-अपने मासूमों का बचपन गवांकर।

अपना तो हो गया, बच्चों का जीवन बचाइए,
मॉं-बाप बच्चों को दो भाग में आप मत बांटिए॥

परिचय– दिनेश चन्द्र प्रसाद का साहित्यिक उपनाम ‘दीनेश’ है। सिवान (बिहार) में ५ नवम्बर १९५९ को जन्मे एवं वर्तमान स्थाई बसेरा कलकत्ता में ही है। आपको हिंदी सहित अंग्रेजी, बंगला, नेपाली और भोजपुरी भाषा का भी ज्ञान है। पश्चिम बंगाल के जिला २४ परगाना (उत्तर) के श्री प्रसाद की शिक्षा स्नातक व विद्यावाचस्पति है। सेवानिवृत्ति के बाद से आप सामाजिक कार्यों में भाग लेते रहते हैं। इनकी लेखन विधा कविता, कहानी, गीत, लघुकथा एवं आलेख इत्यादि है। ‘अगर इजाजत हो’ (काव्य संकलन) सहित २०० से ज्यादा रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आपको कई सम्मान-पत्र व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। श्री प्रसाद की लेखनी का उद्देश्य-समाज में फैले अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरूक करना, बेहतर जीवन जीने की प्रेरणा देना, स्वस्थ और सुंदर समाज का निर्माण करना एवं सबके अंदर देश भक्ति की भावना होने के साथ ही धर्म-जाति-ऊंच-नीच के बवंडर से निकलकर इंसानियत में विश्वास की प्रेरणा देना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-पुराने सभी लेखक हैं तो प्रेरणापुंज-माँ है। आपका जीवन लक्ष्य-कुछ अच्छा करना है, जिसे लोग हमेशा याद रखें। ‘दीनेश’ के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-हम सभी को अपने देश से प्यार करना चाहिए। देश है तभी हम हैं। देश रहेगा तभी जाति-धर्म के लिए लड़ सकते हैं। जब देश ही नहीं रहेगा तो कौन-सा धर्म ? देश प्रेम ही धर्म होना चाहिए और जाति इंसानियत।